*शुभ कार्यों में पूर्व दिशा में ही मुख क्यों ?*

यह तो हम सभी जानते हैं कि सूर्य पूर्व दिशा की ओर से उदित होता है। वेदों में उदित होते हुए सूर्य की किरणों का बहुत महत्त्व बताया गया है

 

उदित होता हुआ सूर्य मृत्यु के सभी कारणों अर्थात् सभी रोगों को नष्ट करता है। सूर्य की किरणें मनुष्य को मृत्यु से बचाती हैं अर्थात् मृत्यु के बंधनों को यदि तोड़ना है, तो सूर्य के प्रकाश से अपना संपर्क बनाए रखें

सूर्य के प्रकाश में रहना अमृत के लोक में रहने के तुल्य है। चूंकि भगवान् सूर्य परमात्मा नारायण के साक्षात् प्रतीक हैं, इसलिए वे सूर्य नारायण कहलाते हैं। सूर्य ही ब्रह्मा का आदित्य रूप हैं। ये ही जगत के एकमात्र नेत्र (प्रकाशक) हैं, समस्त प्राणियों की उत्पत्ति का कारण और पालनहार हैं। प्रत्यक्ष देवता हैं, जिनका अवतरण ही संसार के कल्याण के लिए हुआ है सूर्य ही एक ऐसे देव हैं, जिनकी उपासना से हमें प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है, मनोकामनाएं पूरी होती हैं। वेदों में ओजस्, तेजस् एवं ब्रह्मवर्चस् की प्राप्ति के लिए सूर्य की उपासना करने का विधान है। सूर्य मानव मात्र के समस्त शुभ और अशुभ कर्मों के साक्षी हैं। उनसे हमारा कोई भी कार्य या व्यवहार छिपा नहीं रह सकता, क्योंकि सूर्य विश्व चक्षु जो है।

 

सूर्य उपनिषद् के अनुसार समस्त देव, गंधर्व एवं ऋषि भी सूर्य रश्मियों (किरणों) में निवास करते हैं।

 

अतः सूर्य की किरणों और उनके प्रभावों की प्राप्ति के लिए ही प्रत्येक शुभ कार्यों व संस्कारों को करते समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठने की परंपरा हमारे वेदों के निर्देशों पर की गई है, ताकि धार्मिक व्यक्ति इसका अधिक-से-अधिक लाभ उठा सकें। उल्लेखनीय है कि इस समय की किरणों में अवरक्त (infrared) किरणें होती हैं, जिनमें रोगों को नष्ट करने की विशेष क्षमता होती है। सूर्य की सात अलग-अलग रंग की किरणों से सात प्रकार की ऊर्जा भी प्राप्त होती है। इस ऊर्जा के कारण सभी धार्मिक अनुष्ठान सफल होते हैं। सूर्य की अवरक्त किरणें सीधे छाती पर पड़ती रहें, तो उनके प्रभाव से व्यक्ति सदा निरोग रहता है। इसीलिए प्रातः सूर्योदय के समय पूर्व की ओर मुख करके सूर्य नमस्कार, सूर्य उपासना, संध्योपासना, पूजा-पाठ, हवन आदि शुभ कृत्य करना बहुत लाभदायक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *