बलवारी , सतपुड़ा पर्वत की गोद में बसा हुआ है । यह स्थान प्राकृतिक सौंदर्य और आदिवासी संस्कृति को समेटे हुए हैं । इस गाँव के निकट एक पहाड़ी पर स्वयं प्रकट हुई हनुमानजी की आकर्षक प्रतिमा है, जो कि साढे़ बारह फीट ऊँची और 5 फीट चोडी है । पाषाण प्रतिमा हजारों वर्ष पहले से विराजित है। जो कि भक्‍तों को एक दिन में तीन अवतार के दर्शन कराती है। प्रात:काल में बाल्यावस्था , दोपहर में युवावस्था व बाबा का विशाल रूप भक्तों को नजर आता है एवं शाम को शालीन रूप से वृद्धावस्था के दर्शन होते हैं। प्रतिमा पांडव काल से भी पूर्व की मानी जाती है । प्रतिमा पहाड़ी पर , बिना किसी सहारे के , खड़ी हुई है। साथ ही मान्यता है कि यह स्वयं भू प्रकट हुई थी। इस प्रतिमा का चमत्कारिक रूप गंधवानी क्षेत्र के लोगोें ने देख रखा है। प्रतिमा की एक विशेषता यह भी है कि इस प्रतिमा के ऊपर छाँव के लिए किसी भी प्रकार की कोई छत पहले नहीं थी । कहा जाता है कि भगवान की यह प्रतिमा खुले में ही रहना चाहती है। इसके ऊपर कई बार छांव का प्रबंध किया गया लेकिन वह टिकता नही था। इसके बाद से छाँव का प्रबंध करना ही बंद कर दिया गया । ग्रामीणों के अनुसार एक रोचक बात यह भी है कि गत सालों में इंदौर के एक व्यापारी को हनुमानजी ने स्वप्न दिया और छत डालने की बात कही।व्यापारी गंधवानी में बलवारी हनुमान मन्दिर को ढूंढते हुए आए व हनुमानजी के मन्दिर पर छत डाली गई है , तब से आज तक यह छत टिकी हुई है। हनुमानजी की मूर्ति के पैरों के नीचे अहिरावण की आराध्य देवी माँ चामुंडा को दबा रखा है। यहाँ मध्यप्रदेश के अलावा गुजरात , महाराष्ट्र , राजस्थान से भी श्रद्धालु दर्शन करने बड़ी संख्या में पहुँचते है ।

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