आपको भगवान गणेश के एक ऐसे ही विशेष मन्दिर के बारे जो प्राचीन तो है ही , इसके अलावा यहाँ विराजमान भगवान गणेश की मूर्ति भी एकदम विशेष है जिसे आपने कहीं भी नहीं देखा होगा ; तो आइये आज बुधवार को गणपति दिवस पर एक अनोखे गणेश मन्दिर के दर्शन करवाते हैं l मध्यप्रदेश के निमाड़ क्षेत्र में नर्मदा
नदी के किनारे महेश्वर नामक नगर में महावीर मार्ग पर गोबर गणेश मन्दिर स्थित है , जिनके दर्शन के लिए वर्ष भर भक्तों का तांता लगा रहता है।
इस शहर को महिष्मती नाम से भी जाना जाता था। कालांतर में यह महान देवी अहिल्याबाई होल्कर की भी राजधानी रहा है। *आदिगुरु शंकराचार्य तथा पंडित मण्डन मिश्र का प्रसिद्ध शास्त्रार्य महेश्वर में ही हुआ था।
गणपतिजी के दक्षिणमुखी अवस्था में बहुत कम ही मन्दिर मिलते हैं ; प्राचीन नगर , महेश्वर के इस मन्दिर में गणेशजी दक्षिण दिशा में मुख कर ही विराजमान हैं। इसके साथ इस मन्दिर में जिस चीज से भगवान गणपतिजी की प्रतिमा बनी हुई है वह शायद ही कहीं और होगी ।यहाँ पर विराजमान भगवान गणेशजी की मूर्ति गोबर से बनी हुई है इस कारण यह मन्दिर ‘ गोबर गणेश मन्दिर ‘ के नाम से प्रसिद्ध है।
इस मन्दिर का बाहरी आकार किसी मस्जिद के गुंबद की तरह है तो वहीं मन्दिर के अंदर की बनावट लक्ष्मी श्री यंत्र के आकार की तरह लगती है। इस मन्दिर में भगवान श्रीगणेशजी की प्रतिमा किसी पत्थर या धातु से बनी हुई नहीं है बल्कि यह प्रतिमा गोबर और मिट्टी से बनी हुई है। हिंदू धर्म में गोबर को पवित्र और शुद्ध माना गया है। इस मूर्ति को बनाने में 70 से 75 % गोबर और 20 से 25 % मिट्टी और अन्य दूसरी सामग्री का प्रयोग किया गया है l ऐसी मान्यता है कि भगवान गणेशजी की मिट्टी और गोबर की प्रतिमा में पंचतत्वों का वास होता है। विशेषकर इसमें महालक्ष्मी का निवास होता है , इसलिए इस मन्दिर में गणेशजी के साथ ही लक्ष्मीजी की पूजा और दर्शन होते हैं ; इनके दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएँ अवश्य पूरी होती हैं। कमल के फूल पर विराजमान करीब 10 फिट ऊॅंची गजाननजी की यह सुन्दर प्रतिमा है l गणेशजी की प्रतिमा के हाथ में लड्डू हैं , रिद्धि-सिद्धि भी इनके साथ विराजित हैं जिनके दर्शन से भक्तों का कल्याण होता हैं और मूषक भी गणेशजी के चरणों में बैठे हुए है। प्रतिमा में
गणपतिजी के मस्तक पर मुकुट , गले में हार और मनमोहक श्रृंगार नजर आता है। गणेशजी का श्रृंगार होने के बाद बहुत ही मनमोहक रूप के दर्शन होते है। गोबर से बनी भगवान गणेश की इस मूर्ति के बारे में भी विद्वानों का तर्क है कि मिट्टी और गोबर से बनी मूर्ति की पूजा पंचभूतात्मक होती है। हमारे पूर्वज भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गोबर मिट्टी से ही गणेशजी का बिम्ब बनाकर उनकी पूजा किया करते थे शोणभद्र शीला या अन्य सोने चांदी के बने बिम्ब को पूजा में नहीं रखते थे क्योकि गोबर में लक्ष्मीजी का वास होता है , इसलिए इस मन्दिर में आने वाले भक्तों की मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों को भगवान गणेश के साथ माँ लक्ष्मीजी का भी विशेष आशीर्वाद मिलता है। इतना ही नहीं यहाँ करीब 12 साल से अखण्ड ज्योति जल रही है।
गोबर गणेश की इस प्रतिमा की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई थी इसके विषय में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है , ऐसा कहा जाता है कि यह मन्दिर गुप्तकालीन है, कुछ लोग इस प्रतिमा को करीब 900 वर्ष पुरानी प्रतिमा मानते हैं , लेकिन पुरातत्व विभाग के स्व. विष्णुदत्त श्रीधर वाकणकर ने जब इस मूर्ति का निरीक्षण किया था तो उन्होंने पाया कि 10 फुट ऊॅंची यह मूर्ति लगभग 500 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी है l इस मन्दिर का जीर्णोद्घार अहिल्याबाई होल्कर ने करीब 250 साल पहले करवाया था। इस मन्दिर की देखभाल का काम ” श्री गोबर गणेश मन्दिर जिर्णोद्धार समिति ” कर रही है l यहाँ आने वाले भक्तों का भी मानना है कि यहाँ आने मात्र से ही गणपतिजी सभी की इच्छा पूरी कर देते हैं।