इस्लाम को बचाने के लिए इमाम हुसैन ने दी थी शहादत – मौलाना शाकिर नूरी
पैगाम-ए-शहीदे आज़म कॉन्फ्रेंस में उमड़ा जनसैलाब, अकीदतमंदो ने लगाए नारे
सूबे की प्रमुख दीनी व समाजी तंजीम मुस्लिम वैलफेयर एसोसिएशन की ओर से मोहल्ला तिलक नगर के बरकाती ग्राउंड में 48 वां सालाना दस दिवसीय प्रोग्राम पैगामे शहीदे आज़म की तीसरी महफ़िल बुधबार की रात मुनक्किद हुई कॉन्फ्रेंस का आगाज़ हाफिज़ फज़ले अज़ीम ने तिलावते कुरान और संचालन तालिब बेग बरकाती ने किया।
कॉन्फ्रेंस में मुंबई की सरज़मी से आये मौलाना शाकिर नूरी ने कहा कि नेक काम के लिए इंसान का हौसला बुलंद हो तो उसके इरादे को भूख, प्यास, हुकूमत और दौलत नहीं तोड़ सकती है। यह काम हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों ने कर्बला में शहादत देकर साबित किया था। हज़रत इमाम हुसैन ने कर्बला की जंग में बता दिया था कि सिर तो कटा सकते हैं, लेकिन यजीद जैसे क्रूर शासक के सामने झुका नहीं सकते। उन्होंने कहा कि उस वक्त के शासक यजीद ने जु़ल्म की इंतहा कर दी थी और इस्लाम को बदनाम करने में लगा हुआ था लेकिन हज़रत इमाम हुसैन ने अपने नाना हज़रत मोहम्मद सल्लाहो अलैह वसल्लम के दीन-ए-इस्लाम को बचाने की खातिर रिश्तेदारों के साथ भूखे प्यासे रहकर शहादत दी थी और इस्लाम को बचाया था। यहां तक कि हज़रत इमाम हुसैन ने अपने छह महीने के बच्चे अली असगर को दीन इस्लाम की खातिर कुर्बान कर दिया। इससे पहले हाफिज़ अमन रज़ा, अशरफ बेग, अमान बेग ने नात पढ़ी। वही कानपुर से आये मौलाना मुश्ताक अहमद मुशाहिदी ने मौला-ए-कायनात की शहादत ब्यान करते हुए कहा कि मुहम्मद साहब को हज़रत अली से बेपनाह मोहब्बत थी, मोहम्मद साहब पर जब आसमानी किताब नाज़िल होने लगी, तब हज़रत अली की उम्र महज़ 10 साल थी, खैबर की जंग में मरहब पहलवान को शिकस्त और खैबर की जंग को फतह करने के बाद मोहम्मद साहब ने हज़रत अली को असदउल्लाह का लकब दिया, मतलब होता है ‘ईश्वर का शेर’
अब्दुर्रहमान नाम के व्यक्ति ने ज़हर में डूबी तलवार से वार कर दिया। दो दिन बाद 21 रमज़ान को मौला अली की शहादत हुई। इस मौके पर सदर शारिक बेग, अब्दुल वहाब, अब्दुल रज्जाक, सैय्यद इस्राफील, रईस, वामिक बेग, ज़िया, दानिश, हस्बैंड हैदर, तालिब बेग आदि लोग मौजूद रहे।