माता पार्वती पूर्व जन्म में सती के रूप में प्रजापति दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान ना सह सकीं और यज्ञ की अग्नि में देह त्याग कर दिया। उन्होंने मरते समय भगवान विष्णु से वर मांगा कि उनकी प्रीति हर जन्म में भगवान शिव के प्रति बनी रहे।

माता सती ने हिमाचल राज के घर पर पुत्री रूप में जन्म लिया। माता पार्वती ने नारद जी के कहे अनुसार भगवान शिव की घोर तपस्या की । माना जाता है कि भगवान शिव ने श्रावण मास में ही माता पार्वती की भक्ति से प्रसन्न होकर दर्शन दिए थे। भगवान शिव और माता पार्वती का पुनः मिलन हुआ भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ। इस लिए भगवान शिव को यह मास बहुत पसंद है

एक मान्यता यह भी है कि भगवान शिव श्रावण मास में ही पृथ्वी पर अपने ससुराल आकर विचरण किया था तो उनका अभिषेक कर स्वागत किया गया था इसलिए श्रावण मास में अभिषेक का महत्व है।

इसलिए ही कुंवारी कन्याएं श्रावण मास में भगवान शिव और मां पार्वती का पूजन करती है ताकि उनको मनवांछित वर प्राप्त हो सके।श्रावण मास में माता पार्वती की भी विशेष पूजा अर्चना की जाती है

समुद्र मंथन कथा

एक अन्य मान्यता के अनुसार देवताओं और दैत्यों ने जब अमृत की प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन किया। उसमें से जब हलाहल विष निकला तो तीनों लोकों को बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष का पान किया और उसे अपने गले में धारण किया तब उनका नाम नीलकंठ पड़ा। भगवान शिव से प्रसन्न हो कर देवताओं ने उनपर जल से अभिषेक किया ।

भगवान विष्णु चतुर्मास में योग निद्रा में रहते हैं इसलिए सृष्टि की देखरेख भगवान शिव ही करते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनका अभिषेक किया जाता है ताकि भगवान शिव प्रसन्न रहे और मनवांछित फल प्रदान करे ।चातुर्मास में दान पुण्य का विशेष महत्व है ।

ऋषि मारकंडू के पुत्र मार्कण्डेय की आयु कम थी ऋषि ने उनको अपनी अकाल मृत्यु से बचने के लिए भगवान शिव की आराधना करने को कहा कहते हैं कि मार्कण्डेय ऋषि ने श्रावण मास में भगवान शिव को प्रसन्न कर करने के लिए घोर तपस्या की थी।

श्रावण मास में श्रद्धालु ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए हरिद्वार, उज्जैन, नासिक आदि जाते है।

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