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हरितालिका तीज व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन के लिए रखती हैं। इस व्रत को सभी व्रतों में सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि यह व्रत निर्जला रखा जाता है। कुंवारी कन्याएं हरतालिका तीज व्रत को सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं। हिन्दू धर्म शास्त्रों मे वर्णन किया गया है कि भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने इस व्रत को किया था। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम के वक्त भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिवजी की वेशभूषा और उनका रहन-सहन राजा हिमाचल को पसंद नहीं था। उन्होंने इस बात की चर्चा नारदजी से की तो उन्होंने उमा का विवाह भगवान विष्णु से करने की सलाह दी। माता पार्वती भगवान शिव को अपना पति मान चुकी थीं। इसलिए उन्होंने विष्णुजी से विवाह करने से मना कर दिया। तब माता पार्वती की सखियों ने इस विवाह को रोकने की योजना बनाई। माता पार्वती की सखियां उनका अपहरण करते जंगल ले गईं, ताकि उनका विवाह विष्णुजी से न हो सके। सखियों के माता पार्वती का हरण किया इसलिए इस व्रत का हरतालिका तीज पड़ गया। जंगल ने माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रुप में पाने के लिए तप किया और फिर शिवजी ने उन्हें दर्शन देकर पत्नी के रूप में अपना लिया इस व्रत का विधान आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति की प्राप्ति, चित्त और अन्तरात्मा की शुद्धि, संकल्प शक्ति की दृढ़ता, वातावरण की पवित्रता के लिए लाभकारी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के द्वारा व्रती अपने भौतिक एवं पारलौकिक संसार की व्यवस्था करता है ।

 

हरितालिका तीज पूजा विधि:-

प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही जागकर नित्यकर्मों से निवृत्त होने के बाद पूजा की तैयारियां शुरू करनी चाहिए । (इस दिन महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां और मेहंदी पहनती हैं। मेहंदी सुहाग का प्रतीक है। हरतालिका तीज के दिन हरे रंग का विशेष महत्व होता है।)

 

हरितालिका तीज में श्रीगणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम मिट्टी से तीनों की प्रतिमा बनाएं । शिव-पार्वती एक ही विग्रह में होते हैं। साथ ही देवी पार्वती की गोद में भगवान गणेश भी विराजमान रहते हैं। संभव हो तो से बने शिव-पार्वती के विग्रह को गंगा की मिट़्टी से बनाकर प्रतिष्ठित करने के लिए केले के खंभों से मंडप बनाये तथा तरह-तरह के सुगंधित पुष्पों से साज-सज्जा करनी चाहिए ।

तत्पश्चात पूर्व या उत्तर मुख होकर दाहिने हाथ में जल, चावल, सुपारी, पैसे और पुष्प लेकर इस मांगलिक व्रत का संकल्प लें।

 

इसका उपरांत भगवान गणेश को तिलक करके दूर्वा अर्पित करें। माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें, और पीताम्बर रंग की चुनरी चढ़ायें । इस प्रकार पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन के उपरांत कलश स्थापन करना चाहिए । भगवान शिव की पूजा मे फूल, बेलपत्र, शमिपत्री, धूप, दीप, गन्ध, चन्दन, चावल, विल्वपत्र, पुष्प, शहद, यज्ञोपवीत,धतूरा, कमलगट्टा,आक का फल या फूल का प्रयोग करें। पूजा मे देवी गौरी की पूजा निम्न मंत्र से करे:- ॐ उमायै नमः, पार्वत्यै नमः, जगद्धात्रयै नमः, जगत्प्रतिष्ठायै नमः, शान्तिस्वरूपिण्यै नमः, शिवायै नमः, ब्रह्मरूपिण्यै नमः।

भगवान शिव की पूजा निम्नलिखित मंत्र से अथवा पंचाक्षरी मंत्र से करे:- ॐ हराय नम: ॐ महेश्वराय नम: ॐ शम्भवे नम: ॐ शूलपाणये नम: ॐ पिनाकवृषे नम: ॐ शिवाय नम: ॐ पशुपतये नम: ॐ महादेवाय नम: शिव पंचाक्षरी मंत्र:-।। ॐ नमः शिवाय ।। नाम मन्त्रों से पूजन कर निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें:- देवि- देवि उमे गौरि त्राहि मां करूणानिधे । ममापराधः क्षन्तव्या भुक्ति- मुक्ति प्रदा भव ।।

कुंवारी कन्याओं को शीघ्र विवाह एवं मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए सौन्दर्यलहरी या पार्वती मंगल स्तोत्र का पाठ करना लाभदायक माना जाता है।

 

इसके बाद श्रीगणेश, शिव और माता पार्वती की आरती करें । दिन में व्रत कथा सुनने के बाद महिलाएं निर्जला रहकर पूरे दिन व्रत रखती हैं। रात में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है। हरितालिका तीज का व्रत अगले दिन खोला जाता है।

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