कानपुर
दिल्ली के बतला हाउस फर्जी एनकाउंटर की 16वीं वर्षगांठ के मौके पर राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के तत्वाधान में न्यायिक जांच की मांग को लेकर जोरदार प्रदर्शन किया गया। इस अवसर पर कौंसिल के कार्यकर्ताओं ने प्रधानमंत्री के नाम संबोधित ज्ञापन सौंपा और इस एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग दोहराई।
राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल के जिला अध्यक्ष मोहम्मद वारिस ने जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपते हुए कहा कि 19 सितंबर 2008 को कांग्रेस सरकार के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने बतला हाउस में एक साजिश के तहत फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया था। इस मुठभेड़ में दो बेगुनाह नौजवानों को मौत के घाट उतार दिया गया और अनेक मुस्लिम युवाओं को इस मामले में फंसा कर उनकी जिंदगी बर्बाद कर दी गई।
मोहम्मद वारिस ने बताया कि इस एनकाउंटर के खिलाफ राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल ने आजमगढ़ से लेकर दिल्ली तक बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया था और तब से ही इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की जा रही है। इस मांग को न केवल मुस्लिम समुदाय बल्कि देश के हर न्यायप्रिय नागरिक का समर्थन मिला है, लेकिन अब तक किसी भी सरकार ने इस दिशा में कदम नहीं उठाया।
वारिस ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 176 के अनुसार, किसी भी पुलिस मुठभेड़ में हुई मौत की मजिस्ट्रेट जांच अनिवार्य है, लेकिन बतला हाउस एनकाउंटर के मामले में कानून की पूरी तरह से अनदेखी की गई। इस घटना के दौरान एक बहादुर पुलिस अधिकारी और दो प्रतिभाशाली छात्रों की मौत हुई, लेकिन न तो कांग्रेस, न भाजपा, और न ही दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में आने के बाद इस घटना की जांच करवाने की कोई पहल की।उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर इस एनकाउंटर की जांच क्यों नहीं कराई जा रही है? अगर एनकाउंटर सही था, तो जांच में भी वही सच सामने आएगा। राष्ट्रीय ओलमा कौंसिल ने इस मामले में न्यायिक जांच की मांग करते हुए कहा कि लोकतंत्र में पारदर्शिता होनी चाहिए और इस फर्जी एनकाउंटर का सच देश के सामने आना चाहिए।