आज वर्ल्ड हार्ट डे के अवसर पर इण्डियन मेडिकल एसोसिएशन कानपुर शाखा एवं आईएमए हेडक्वार्टर के संयुक्त तत्वावधान में द्वारा आई०एम०ए० सभागार में एक सेमिनार का आयोजन किया गया। सेमिनार में वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ हृदय रोग संस्थान के प्रोफेसर डा० अवधेश शर्मा ने बताया कि अनियमित धड़कन व अनकंट्रोल्ड हाई बी० पी० पर अपने विचार व्यक्त किये। डा० शर्मा ने बताया कि वर्ल्ड हार्ट डे की शुरुआत सन् २००० में विश्व स्वास्थ्य संगठन व वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन ने लोगों में हृदय रोगों के प्रति जागरूकता फैलाने के लिये की थी। इस बार के वर्ल्ड हार्ट डे का थीम है- ‘यूज हार्ट फॉर एक्शन” मतलब हमें अपने हृदय को सक्रिय रखना है उसका इस्तेमाल करना है तभी हम स्वस्थ्य रह सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की प्रतिदिन कम से कम ३० मिनट का समय शारीरिक व्यायाम के लिये निकालना चाहिये व प्रतिदिन योग व मेडिटेशन भी करना चाहिये। थोड़ी- थोड़ी दूरी पर वाहन के स्थान पर पैदल चलकर जाना चाहिये. लिफ्ट के स्थान पर सीढ़ियों का प्रयोग करना चाहिये, इस तरह के छोटे-छोटे बदलावों से हम काफी हद तक शारीरिक रूप से सक्रिय रहेंगे। डा० शर्मा ने बताया कि हाई बी० पी० एक साइलेंट किलर की तरह कार्य करता है व हार्ट अटैक के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। हमें अपने ब्लड प्रेशर की नियमित जाँच कराते रहना चाहिये। सेमिनार में वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डा० अमित कुमार गुप्ता ने हार्ट अटैक के रिस्क फैक्टर्स व नसों में जमने वाले धक्के के सम्बन्ध में चर्चा की। डा० अमित ने बताया कि स्वस्थ्य खान-पान व संयमित जीवन शैली अपनाकर हम हृदय रोगों से दूर रह सकते हैं। सेमिनार के अध्यक्षीय संबोधन में शहर के वरिष्ठ हृदय रोग ए० के० त्रिवेदी ने योग व मेडिटेशन पर जोर दिया।विशेषज्ञ डा० मेडिटेशन तनाव को दूर करने में काफी हद तक सहायक हैं और तनाव से होने वाले हृदय रोगों से बचाव करते हैं।

द्वितीय वक्ता डॉ. अमित कुमार, एमडी, डीएम, एफएससीएआई इंटरवेंशनल,कार्डियोलॉजिस्ट, के केयर हॉस्पिटल ने ने बताया कि थ्रोम्बोइम्बोलिक डिसऑर्डर दो प्रकार के होते है डीप वेन थ्रोम्बोसिस (डी.वी.टी.),पल्मोनरी एम्बोलिज्म (पी.ई.),डीप वेन थ्रोम्बोसिस आमतौर से पैसे की गहरी शिराओं में खूब के धक्के बनते है। खून के धक्कों के कारण पैर बाहे से सूजन हो सकती है। खूब का धक्का टूट कर अलग हो सकता है और फेफड़ों में जा सकता है जिसे पल्मोनरी एम्बोलिज्म कहते है। कलर डॉप्लर डीप वेन थ्रोम्बोसिस का पता लगया जा सकता है।डी-डाइमर (D-Dimas) टेस्ट से भी इस बिमारी के बारे में पता लगाया जा सकता है। इस बिमारी के उपचार के लिये एंटीको एग्युलेट नामक दवाइयों का प्रयोग किया हैं।

शिशु को जन्म देने के बाद प्रसूता स्वस्थ थी, लेकिन घबड़ाहट हुई और मौत हो गई। ऐसे मामले अक्सर सुनने में आते हैं। ऐसे बहुत से मामलों में इसका वास्तविक कारण पल्मोनरी संबोलिज्म नामक बिमारी हो सकती है। पल्मोनरी संबोलिजम का मतलब है, फेफड़ों की रक्त नलिकाओं का अवरुद्ध हो जाक यह बिमारी हार्ट अटैक से भी गंभीर बिमारी मानी जाती है क्योंकि इस बिमारी की पहचान करने में परेशानी आती है। कुछ लोगो जन्म से प्रोटिन ‘सी’ व ‘एस एवं एंटीथ्रोबिन 3’ का कमी पाई जाती है जिसके वजह से इन लोगों में यह बिमारी हो सकती है। इसके अतिरिक्त निन्न लोगों में यह बिमारी हो सकती है.

 

गर्भ निरोधक दवाओं का सेवन करने वाली महिलाए अधिक समय हो तक आई सी यू में रहे मरीज शल्य चिकित्सा के बाद कैंसर रोगी अधिक मोटे के लोग जो बहुत कम चलते है चिकित्सक इस बिमारी को सही करने के लिये खून को पतला करने वाली दवाईयों या जटिल मामलो में सर्जरी का प्रयोग करते हैं।सेमिनार में शहर के अधिकतर चिकित्सकों ने प्रतिभाग किया। सेमिनार का आयोजन आई० एम०ए० के कार्यवाहक अध्यक्ष डा० अनुराग मेहरोत्रा व सचिव डा० क्षमा शुक्ला किया।

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