नर्मदा नदी को तपोभूमि माना जाता है ; संतो के अनुसार गंगा जी में स्नान करने से , यमुनाजी में आचमन करने से जो पुण्य मिलता है वही पुण्य नर्मदाजी के केवल दर्शन करने से ही प्राप्त हो जाता है l

 

भारतवर्ष के ह्रदय स्थल मध्य प्रदेश के औद्योगिक नगर इंदौर से करीब 90 किमी देवास से करीब 105 किमी.

दूर ,देवास जिले की सीमा पर धावड़ी कुंड या धावड़ी घाट धार्मिक स्थल है जिसे मालवा के लोग धाराजी के नाम से पुकारते हैं l

 

यह स्थान धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण स्थल है इस स्थान पर नर्मदा नदी का जल करीब 50 फीट की ऊॅंचाई से जलप्रपात के रूप में गिरता है , जल के वेग से पत्थरों में करीब 10 -15 फीट व्यास के गोल गड्ढे ( ओखली के आकार के ) हो गए हैं ,

 

इन गड्ढों की गहराई का अनुमान लगाना भी नामुमकिन है ; नर्मदा नदी जब अपना जल वहाँ डालती है तो जल के साथ पत्थर भी बहकर उन गड्ढों में गिरते रहते हैं और वह पत्थर उन गड्ढों में पानी के वेग के साथ घिसकर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं जिन्हें बाण या नर्मदेश्वर कहा जाता है l धावड़ी कुंड के अंदर पत्थर पानी के सहारे गोल – गोल घूमते हैं और घिस घिसकर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं ऐसा लगता है जैसे नर्मदा नदी ने अपने आराध्य देव भोलेनाथ को आकार देकर सतत उनका अभिषेक किया हो इसीलिए उन्हें बाण या नर्मदेश्वर महादेव कहा जाता है और धार्मिक मान्यता है कि धाराजी के स्वयंभू बाणों की प्राण प्रतिष्ठा करना आवश्यक नहीं होती है यह स्वयंभू होकर प्राण प्रतिष्ठित होते हैं l *ध्यान रहे कि नर्मदा नदी पर ओमकारेश्वर बाॅंध बनने से , धावड़ी कुंड ( धाराजी ) अब जलमग्न हो गया है , अब वह सबसे बड़ा जलप्रपात हमें देखने को नहीं मिलता है l हम केवल नर्मदा नदी के किनारे से ही उस स्थल के दर्शन कर पाते हैं ; जिसे धावड़ी कुण्ड कहते हैं l

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