भगवान महाकालेश्वर के रूप श्री कालभैरव अष्टमी की आप सभी को शुभकामनाएं। भगवान शिवशंकर और काल भैरव बाबा की कृपा आप सभी पर बनी रहे।
भगवान शिव के उग्र स्वरूप को काल भैरव के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म विशेषकर शैव और शाक्त संप्रदाय में काल भैरव के पूजन का विशिष्ट महत्व है। इनके पूजन से मृत्यु के भय पर विजय की प्राप्ति होती है। काल भैरव का भक्त कभी अकाल मृत्यु को प्राप्त नहीं होता है। काल भैरव के जन्म या अवतरण की कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
काल भैरव का जन्म मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था, तब से इसे भैरव अष्टमी के नाम से जाना जाता है। इसीलिए काल भैरव की पूजा मध्याह्न व्यापिनी अष्टमी पर करनी चाहिए।
काशी नगरी की सुरक्षा का भार काल भैरव को सौंपा गया है इसीलिए वे काशी के कोतवाल कहलाते हैं। शिवपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की अष्टमी को उनका अवतार हुआ था। शास्त्रों के अनुसार भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के रूद्र रूप से हुई थी।
बाद में शिव के दो रूप उत्पन्न हुए प्रथम को बटुक भैरव और दूसरे को काल भैरव कहते हैं। ऐसी भी मान्यता है कि बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है और इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं। जबकि काल भैरव की उत्पत्ति एक श्राप के चलते हुई, अतः उनको शंकर का रौद्र अवतार माना जाता है। शिव के इस रूप की आराधना से भय एवं शत्रुओं से मुक्ति, और संकट से छुटकारा मिलता है। काल भैरव भगवान शिव का अत्यंत भयानक और विकराल प्रचंड स्वरूप है।
शिव के अंश भैरव को दुष्टों को दण्ड देने वाला माना जाता है इसलिए इनका एक नाम दण्डपाणी भी है। मान्यता है कि शिव के रक्त से भैरव की उत्पत्ति हुई थी इसलिए उनको कालभैरव कहा जाता है।
एक बार अंधकासुर ने भगवान शिव पर हमला कर दिया था तब महादेव ने उसके संहार के लिए अपने रक्त से भैरव की उत्पत्ति की थी। शिव और शक्ति दोनों की उपासना में पहले भैरव की आराधना करने के लिए कहा जाता है। कालिका पुराण में भैरव को महादेव का गण बताया गया है और नारद पुराण में कालभैरव और मां दुर्गा दोनों की पूजा इस दिन करने के लिए बताया गया है।
काल भैरव बाबा के 52 रूप माने जाते हैं। लेकिन मनोकामना पूर्ति के लिए 8 प्रमुख रूपों की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कौन से हैं ये रूप…
कपाल भैरव:-
इस रूप में भगवान का शरीर चमकीला है, उनकी सवारी हाथी है। कपाल भैरव एक हाथ में त्रिशूल, दूसरे में तलवार तीसरे में शस्त्र और चौथे में पात्र पकड़े हैं। भैरव के इस रूप की पूजा अर्चना करने से कानूनी मामलों में सफलता मिलती है और फालतू की मुकदमेबाजी से छुटकारा मिलता है। अटके हुए कार्य पूर्ण होते हैं।क्रोध भैरव:-
क्रोध भैरव गहरे नीले रंग के शरीर वाले हैं और उनकी तीन आंखें हैं। भगवान के इस रूप का वाहन गरूड़ हैं और ये दक्षिण-पश्चिम दिशा के स्वामी माने जाते हैं। क्रोध भैरव की पूजा-अर्चना करने से सभी परेशानियों और बुरे वक्त से लड़ने की क्षमता बढ़ती है
असितांग भैरव:-
असितांग भैरव ने गले में सफेद कपालों की माला पहन रखी है और हाथ में भी एक कपाल धारण किए हैं। तीन आंखों वाले असितांग भैरव की सवारी हंस है। भगवान भैरव के इस रूप की पूजा करने से मनुष्य में कलात्मक क्षमताएं बढ़ती है।चंद भैरव:-
इस रूप में भगवान की तीन आंखें हैं और सवारी मोर है। चंद भैरव एक हाथ में तलवार और दूसरे में पात्र, तीसरे में तीर और चौथे हाथ में धनुष लिए हुए हैं। चंद भैरव की पूजा करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। हर बुरी परिस्थिति से लड़ने की क्षमता मिलती है।गुरु भैरव:-
गुरु भैरव हाथ में कपाल,
कुल्हाड़ी, और तलवार पकड़े हुए हैं। यह भगवान का नग्न रूप है और उनकी सवारी बैल है। गुरु भैरव के शरीर पर सांप लिपटा हुआ है। गुरु भैरव की पूजा करने से अच्छी विद्या और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
संहार भैरव:-
संहार भैरव नग्न रूप में हैं, और उनके सिर पर कपाल स्थापित है। इनकी तीन आंखें हैं और वाहन कुत्ता है। संहार भैरव की आठ भुजाएं हैं और शरीर पर सांप लिपटा हुआ है। इसकी पूजा करने से मनुष्य के सभी पाप खत्म हो जाते हैं।उन्मत भैरव:-
उन्मत भैरव शांत स्वभाव का प्रतीक है। इनकी पूजा करने से मनुष्य की सारी नकारात्मकता और बुराइयां खत्म हो जाती हैं। भैरव के इस रूप का स्वरूप भी शांत और सुखद है। उन्मत भैरव के शरीर का रंग हल्का पीला है और उनका वाहन घोड़ा है।भीषण भैरव:-भीषण भैरव की पूजा करने से बुरी आत्माओं और भूत प्रेत के प्रभाव से छुटकारा मिलता है। भीषण भैरव अपने एक हाथ में कमल, दूसरे में त्रिशूल, तीसरे हाथ में तलवार और चौथे में एक पात्र पकड़े हुए हैं। भीषण भैरव का वाहन शेर है।