*हनुमानजी का गर्व*
रामायण में जब राक्षसों ने सबको मूर्छित कर दिया तो सबसे पहले जाम्बवान् जी जागे। जाम्बवान् जी ने जागते ही पूछा कि हनुमान जीवित हैं या नहीं? यह नहीं पूछा कि राम जी जीवित हैं या नहीं?
कितनी विलक्षण बात है! हनुमान जीवित है तो सब जी जाएंगे, चिंता की कोई बात नहीं। इस प्रकार सबके प्राण हनुमान जी के आधीन हैं।
सब पर दया करने वाले मेरे अराध्य हनुमान जी मुझे क्षमा करें, लेकिन जब हनुमान जी संजीवनी लेने चले तब हनुमान जी ने अपने बल का बखान किया कि अभी लेकर आता हूँ,
चला प्रभंजन सुत बल भाषी ।
इससे क्या हुआ, रात के समय में प्यास लगी और कालनेमि राक्षस के जाल में फंस गए। कालनेमि का उद्धार करके गिरिद्रोण पर्वत पहुँचें तो संजीवनी बूटी की पहचान नहीं हुई। पूरे का पूरा पर्वत उठा कर चले तो अयोध्या पहुँचने पर भरत जी का तीर लगा और पर्वत सहित पृथ्वी पर आ गिरे । इसी प्रकार जब भरत जी ने कहा कि तुम मेरे बाण पर बैठ जाओ, मैं तुमको वहाँ पहुँचा देता हूँ, जहाँ कृपा के धाम श्री राम जी हैं। तब भी एक बार तो हनुमान जी के हृदय में अभिमान उत्पन्न हुआ कि मेरे भार से बाण कैसे चलेगा? किन्तु फिर वहाँ पर श्री राम चन्द्र जी के प्रभाव का विचार करके वे भरत जी की वन्दना करने लगे,
चढ़ु मम सायक सैल समेता । पठवौं तोहि जहँ कृपानिकेता ।।
सुनि कपि मन उपजा अभिमाना । मोरें भार चलिहि किमि बाना ।।
राम प्रभाव बिचारि बिहोरी । बंदि चरन कह कपि कर जोरी ।।
अब जब हनुमान जी ने राम जी के प्रभाव का बखान किया तो फिर उसके बाद उन्हें लंका पहुँचने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
इसी प्रकार वही हनुमान जी जब सीता माता की खोज करने लंका गए तो वहाँ उन्होंने दिन में ही लंका में आग लगा दी। तब भीषण आग में उन्हें प्यास नहीं लगी। इसका कारण क्या था?
जब सीता माता की खोज करने लंका गए थे, तब श्री रघुनाथ जी का स्मरण करते हुए गए थे,
बार बार रघुबीर संभारी ।
इस प्रसंग से जो शिक्षा मिलती है, जब हम प्रभु के नाम का स्मरण करके कोई कार्य करते हैं तो वह कार्य सुगमता पूर्वक हो जाता है, लेकिन जब हम भगवान के बल की जगह अपने बल का बखान करते हैं तो हमारा वह अभिमान हमें अवश्य ही किसी न किसी संकट में डालता है।