दिनांक 8 फरवरी 2025
आज दिनांक 8 फरवरी 2025 दिन शनिवार को आई०एम०ए०ए एम एस कानपुर सब चैप्टर द्वारा आयोजित एक त्रिय सत्रीय सी०एम०ई० प्रोग्राम जिसके प्रथम सत्र में “फेफड़ों की देखभाल में नई दिशाः नवाचार और अंतर्दृष्टि विज्ञान और चिकित्सा के बीच सेतु” विषय पर डॉ एस के कटियार पूर्व प्रधानाचार्य और डीन जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर, द्वितीय सत्र में वक्ता डॉ संदीप कटियार, कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट, अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, कानपुर ने अनिर्धारित, अनुत्तरदायी और बार बार होने वाला प्लूरल इफ्यूजन’ विषय पर एवं तृतीय सत्र में “ड्रग रेसिस्टेंट टीबी’ पर पैनल डिस्कसन पर एक पत्रकार वार्ता का आयोजन ” टेंपल ऑफ सर्विस, सेमिनार हाल आईएमए परेड कानपुर में दोपहर 1:00 बजे किया गया।
इस पत्रकार वार्ता को आई एम ए कानपुर की अध्यक्ष डॉ नंदिनी रस्तोगी, सचिव डॉ विकास मिश्रा, आई एम ए ए एम ए कानपुर सब चैप्टर के चेयरमैन डॉ अनुराग मेहरोत्रा, सीएमई के मुख्य वक्ता डॉ एस के कटियार, द्वितीय वक्त डॉ संदीप कटियार, डॉ आई एम ए ए एम ए कानपुर सब चैप्टर के सचिव डॉ गौतम दत्ता, डॉ ए सी अग्रवाल, चेयरमैन वैज्ञानिक सब कमेटी ने संयुक्त रूप से संबोधित किया।
आई०एम०ए० कानपुर की अध्यक्ष डा० नंदिनी रस्तोगी ने इस पत्रकार वार्ता की अध्यक्षता की तथा आये हुए सभी पत्रकार बंधुओं का स्वागत करते हुए इस बीमारी की गम्भीरता के विषय में बताया।
आज के मुख्य वक्ता डॉ एस के कटियार, पूर्व प्रधानाचार्य और डीन, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर ने बताया…. संलग्न
द्वितीय सत्र के वक्ता डॉ संदीप कटियार, कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट, अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, कानपुर ने बताया कि सलंग्न…
आई एम ए ए एम ए कानपुर सब चैप्टर के चेयरमैन डॉ अनुराग मेहरोत्रा ने आई एम ए ए एम एस के कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी एवं कार्यक्रम का संचालन आई एम ए ए एम ए कानपुर सब चैप्टर के सचिव डॉ गौतम दत्ता ने किया और अंत में धन्यवाद ज्ञापन आई एम ए कानपुर के सचिव डॉ विकास मिश्रा ने दिया।
आज के इस कार्यक्रम में प्रथम सत्र के चेयरपर्सन डॉ ए के श्रीवास्तव, डॉ सुधीर चौधरी, डॉ अर्जुन भटनागर, डॉ चमन प्रीत गांधी एवं प्रथम सत्र के पैनलिस्ट डॉ डॉ राज तिलक एवं डॉ एम जे गुप्ता कानपुर थे। द्वितीय सत्र के चेयरपर्सन डॉ आनंद कुमार, डॉ राजीव कक्कड़, इंद्रजीत सिंह आहूजा, अरुण प्रकाश द्विवेदी एवं पैनलिस्ट डॉ एस के अवस्थी एवं डॉ श्याम सुंदर कानपुर थे। तृतीय सत्र के चेयरमैनडॉ. सुधीर चौधरी, डॉ. अरुण के. अग्रवाल, और डॉ. आर. के. माथुर एवं पैनलिस्ट डॉ लक्ष्मी, डॉ. अर्जुन भटनागर, डॉ. संतोष के. सिंह, और डॉ. एस. एन. बाजपेई कानपुर थे। जबकि डॉ. एस. के. कटियार ने मॉडरेटर की भूमिका निभाई।
डॉ विकास मिश्रा
सचिव
आईएमए एएमएस के लिए प्रेस नोट
‘फेफड़ों की देखभाल में नई दिशाः नवाचार और अंतर्दृष्टि विज्ञान और चिकित्सा के बीच सेतु’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन ‘अकादमी ऑफ मेडिकल स्पेशलिटीज’ द्वारा किया गया। इस संगोष्ठी का संचालन डॉ. अनुराग मेहरोत्रा (अध्यक्ष) और डॉ. गौतम दत्ता (सचिव) ने किया, जो इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) कानपुर शाखा के तत्वावधान में आयोजित हुआ। इस अवसर पर डॉ. नंदिनी रस्तोगी ने अध्यक्षता की और डॉ. विकास मिश्रा सचिव के रूप में उपस्थित रहे। संगोष्ठी में कुल तीन सत्र आयोजित किए गए।
प्रथम सत्रः ‘नेबुलाइज़ेशन’
इस सत्र में डॉ. एस. के. कटियार, पूर्व प्रधानाचार्य और डीन, जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज, ने नेबुलाइज़ेशन के बदलते परिदृश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसके व्यापक उपयोग, उन्नत तकनीकों और आवश्यक सावधानियों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि नेबुलाइज़ेशन एक प्रभावी श्वसन चिकित्सा है, लेकिन जानकारी के अभाव में इसके दुरुपयोग के कारण इसकी प्रभावशीलता कम हो सकती है और जोखिम बढ़ सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि अस्थमा के अलावा, अब यह कई अन्य पुरानी फेफड़ों की बीमारियों और आईसीयू में गंभीर रूप से बीमार रोगियों के लिए भी फायदेमंद साबित हो रहा है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि घर पर नेबुलाइज़र का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जिससे मरीजों को सुविधा मिलती है और कई मामलों में अस्पताल में भर्ती होने से बचा जा सकता है। लेकिन, उन्होंने नेबुलाइज़र उपकरणों की उचित देखभाल पर भी जोर दिया, क्योंकि घर में इस्तेमाल किए जाने वाले 60-70% नेबुलाइज़र बैक्टीरिया और फंगस से दूषित पाए जाते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
उन्होंने जागरूकता बढ़ाने, जिम्मेदार उपयोग, और सर्वोत्तम प्रक्रियाओं के पालन पर बल दिया ताकि इसका अधिकतम लाभ उठाया जा सके और रोगियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। इस सत्र के दौरान डॉ. ए. के. श्रीवास्तव, डॉ. सुधीर चौधरी, डॉ. अर्जुन भटनागर, और डॉ. चमनप्रीत गांधी ने अध्यक्षता की, जबकि डॉ. राज तिलक और डॉ. एम.जे. गुप्ता पैनलिस्ट के रूप में चर्चा में शामिल हुए।
द्वितीय सत्रः ‘अनिर्धारित, अनुत्तरदायी और बार-बार होने वाला प्लूरल इफ्यूजन’
इस सत्र में डॉ. संदीप कटियार, कंसल्टेंट पल्मोनोलॉजिस्ट, अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, ने प्लूरल इफ्यूजन के निदान और प्रबंधन की जटिलताओं पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि इस स्थिति के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि संक्रमण (टीबी सहित), कैंसर, और अन्य प्रणालीगत बीमारियाँ। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि निदान में देरी से गंभीर जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
सत्र में इन मामलों में संरचित दृष्टिकोण अपनाने और उन्नत निदान तकनीकों की भूमिका पर चर्चा की गई। मेडिकल थोरेकोस्कोपी जैसी आधुनिक तकनीकों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि यह एक सरल प्रक्रिया है, जिसे अक्सर बाह्य रोगी (ओपीडी) स्तर पर किया जा सकता है, और इसकी सफलता दर काफी अधिक है। इसके अलावा, प्लूरा (फेफड़ों की झिल्ली) में पस (प्यूरुलेंट प्लूरल इफ्यूजन) होने पर थोरेकोस्कोपी कई बार बड़ी सर्जरी की आवश्यकता को भी रोक सकती है।
इस सत्र के दौरान डॉ. आनंद कुमार, डॉ. राजीव कक्कड़, और डॉ. इंदरजीत सिंह आहूजा ने अध्यक्षता की, जबकि डॉ. एस. के. अवस्थी और डॉ. श्याम सुंदर पैनलिस्ट के रूप में चर्चा में शामिल हुए।
तृतीय सत्रः ‘ड्रग रेसिस्टेंट टीबी’ पर पैनल चर्चा
इस सत्र में डॉ. आनंद कुमार, डॉ. अर्जुन भटनागर, डॉ. संतोष के. सिंह, और डॉ. एस. एन. बाजपेई पैनलिस्ट थे, जबकि डॉ. एस. के. कटियार ने मॉडरेटर की भूमिका निभाई। इस चर्चा की अध्यक्षता डॉ. सुधीर चौधरी, डॉ. अरुण के. अग्रवाल, और डॉ. आर. के. माथुर ने की।
चर्चा में मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (MDR-TB) और एक्सटेंसिवली ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (XDR-TB) की बढ़ती चुनौती पर प्रकाश डाला गया। विशेषज्ञों ने बताया कि भारत वैश्विक एमडीआर-टीबी भार का 25% हिस्सा रखता है, जिसमें हर साल लगभग 1 लाख नए मामले सामने आते हैं।
विशेषज्ञों ने त्वरित आणविक निदान (Rapid Molecular Diagnostics) में हुई प्रगति जैसे GeneXpert और Whole-Genome Sequencing की भूमिका पर चर्चा की, जो मरीजों में दवा-प्रतिरोध की पहचान को पहले से कहीं अधिक सटीक और तेज़ बनाते हैं।
इसके अलावा, Bedaquiline, Delamanid, और Pretomanid जैसी नई दवाओं के साथ Levofloxacin, Linezolid, और Clofazimine के संयोजन ने उपचार के परिणामों को काफ़ी सुधार दिया है। लेकिन, Levofloxacin और Bedaquiline के प्रति बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता एक नई चुनौती के रूप में उभर रही है, जिससे रणनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता बढ़ गई है।
चर्चा में इस बात पर जोर दिया गया कि टीबी नियंत्रण के लिए निरंतर नवाचार और बेहतर उपचार रणनीतियों की आवश्यकता है, ताकि दवा-प्रतिरोधी टीबी के बढ़ते खतरे से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके।
निष्कर्ष और सहभागिता
इस संगोष्ठी में बड़ी संख्या में चिकित्सकों और विशेषज्ञों ने भाग लिया, और सभी सत्र अत्यंत इंटरैक्टिव और ज्ञानवर्धक रहे। उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में शामिल थे।