आल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल ने शहर कानपुर में सहर व इफ्तार के समय पर जारी बहस पर अफसोस का इज़हार किया।

 

 

 

 

कानपुर आल इंडिया सुन्नी उलमा काउंसिल के जनरल सेक्रेटरी, हाजी मोहम्मद सलीस, ने अपनी प्रेस रिलीज़ में शहर कानपुर में सहर व इफ्तार के समय पर जारी बहस पर अफसोस का इज़हार किया। उन्होंने कहा कि बज़्म-ए-क़ासमी बरकाती ने सहर व इफ्तार, नमाज़ और रोज़े के औकात समय की दरुस्ती के लिए एक क़ाबिले तहसीन कोशिश की, लेकिन अफसोस उन मज़हबी माफ़ियाओं पर जो हर इस्लाही क़दम को निशाना बनाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।

 

यही लोग उस वक़्त ख़ामोश नज़र आते हैं जब मुसलमानों को लालच देकर बुतपरस्त बनाने का ग़ैर आइनी अमल किया जाता है, जब अवाम में उलमा की तौहीन की जाती है, जब उर्दू ज़ुबान में महफूज़ मज़हबी असास के ख़िलाफ़ हुक्मरान इक़दामात करते हैं, जब मिल्लत के इदारे तबाह किए जाते हैं और जब शरीअत के ख़िलाफ़ अमल किए जाते हैं। एक ही शहर में कई क़ाज़ी और कई मुफ़्तियान किराम को ख़त्म कर एक क़ायद के तहत इत्तेहाद की कोई तदबीर नहीं करते। ज़रूरत इस अम्र की है कि फ़राइज़ की पामाली को रोका जाए और मुसलमान इस्लाम के ख़िलाफ़ होने वाली साज़िशों से बाख़बर रहें। बदक़िस्मती से कुछ मज़हबी रहनुमा मामूली इख़्तिलाफ़ात पर कुफ्र व शिर्क के जरासिम तलाश करने में लगे रहते हैं, जबकि आज कुफ्र पूरी इस्लामी तहज़ीब व तमद्दुन को मिटा कर मिल्लत को देवमालाई कहानियों में ग़ुम कर देना चाहता है, और हम आपस में दस्त व गिरेबान हैं। अगर किसी जानिब से कोई बात शरीअत के ख़िलाफ़ आए भी, तो उस से पहले उस शख़्स से राबिता करके इस्लाह की कोशिश करनी चाहिए, न कि फ़ौरन तशद्दुद पर आमादा हो जाना चाहिए। इस मसअले का बेहतर हल यही है कि माहिरीन से मशवरा किया जाए और किसी भी मसअले को हिकमत व तदब्बुर के साथ सुलझाया जाए।

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