*देव- देवालयों में दर्शन के कुछ सामान्य नियम*

 

मंदिर में प्रवेश करते समय सर्वप्रथम देवालय के कलश (मंदिर का गुम्बद) के दर्शन करें तथा उसे प्रणाम करें।

 

कतार में खड़े रहते समय आस- पास के लोगों से बातचीत करने से बचें, यदि देवालय में भीड़ हो, तो कतार में खड़े रहें। दर्शन के लिए आगे बढ़ते समय भगवान का नामजप निरंतर करते रहें। इससे सात्त्विकता अधिक मात्रा में ग्रहण करने में सहायता मिलेगी।

 

सभामंडप की ओर बढ़ते हुए हाथों को नमस्कार मुद्रा में रखें । (दोनों हाथों को जोड़कर अनाहत चक्र (आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाह प्रणाली का चौथा केंद्र, जो सूक्ष्म शरीर में हृदय क्षेत्र में स्थित है) के स्तर पर रखें, लेकिन शरीर से थोड़ा दूर रखें।)

 

मंदिर में दर्शन करने के लिए जाते समय ऐसा भाव होना चाहिए मानो हम अपने पूज्य इष्ट प्रभु के दर्शन करने जा रहे हैं और ‘हमारे गुरु अथवा देवता हमें देख रहे हैं।’

 

देवालय की सीढ़ियां चढ़ते समय दाहिने हाथ की अंगुलियों से सीढ़ियां स्पर्श करें तथा तत्पश्चात उस हाथ को आज्ञाचक्र (आध्यात्मिक ऊर्जा प्रणाली में छठा केंद्र या चक्र ; सूक्ष्म-शरीर में भ्रूमध्य में स्थित) से स्पर्श कराएं।

 

भगवान का दर्शन करते समय सबसे पहले उनके चरणों में देखें वहां पर प्रणाम करें, फिर उसके बाद धीरे-धीरे अपनी नजर उठाकर भगवान के मुख को देखें।

 

ध्यान रहे मंदिर में कभी आंखें बंद करके पूजा नहीं करनी चाहिए। मंदिर में पूजा के दौरान आंखें खुली रखें और भगवान के दर्शनों का अधिक से अधिक लाभ लें।

 

मंदिर में भगवान के समक्ष कुछ देर बैठकर पाठ, मंत्र जप, नाम जप इत्यादि जरूर करें।

 

मंदिर की घंटी धीमी आवाज में ही बजाए और बार-बार मंदिर की घंटी नहीं बजाएं। जब आप मंदिर से वापस बाहर निकले तो उस समय घंटी नहीं बजानी चाहिए।

 

सभामंडप के बाईं ओर से गर्भगृह की ओर चलें। भगवान के दर्शन के बाद लौटते समय सभामंडप के दाईं ओर चलें//

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *