रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश मंदिर भारत के राजस्थान प्रांत में सवाई माधोपुर जिले में निर्मित है। यह मंदिर विश्व धरोहर में शामिल “रणथम्भौर दुर्ग “के भीतर बना हुआ है। अरावली और विन्ध्याचल पहाड़ियों के बीच स्थित रणथम्भौर दुर्ग में त्रिनेत्र गणेश मंदिर प्रकृति व आस्था का अनूठा संगम है।
गणेश जी लड्डू, दुर्वा, फल, फूल या पूजा पाठ से नहीं, चिट्ठी लिखकर चढ़ाने से करते हैं मनोकामना पूरी।
यहां केवल चिट्ठी में लिखी अर्जी ही स्वीकार करते हैं श्री गणेश जी।गणेशजी के बारे में ऐसी मान्यता है कि वे केवल चिट्ठी में लिखी अर्जी से ही प्रसन्न होते हैं। यहां अर्जी लगाने वाला कभी निराश नहीं होता उसकी मनोकामना पूरी होकर ही रहती है।
पधारो हमारे घर जहां भगवान के नाम” डाक” भी आती है। देश भर से भक्त अपने घर में होने वाले हर मंगल कार्य का पहला निमंत्रण यहां भगवान गणेश के लिए भेजते हैं। इन निमंत्रण पत्रों पर ये पता लिखा जाता है श्री गणेश जी, रणथंभौर का किला, जिला- सवाई माधोपुर (राजस्थान), और निमंत्रण आराम से गणपति के पास पहुंच जाता है। इतना ही नहीं मंदिर के पुजारी इन निमंत्रण पत्रों को भगवान को पढ़ कर सुनाते भी हैा ताकि भगवान को भेजने वाले के कार्यक्रम की सूचना मिल जाये।
इस गणेश मंदिर का निर्माण महाराजा हम्मीरदेव चौहान ने करवाया था लेकिन मंदिर के अंदर भगवान गणेश की प्रतिमा स्वयंभू है। इस मंदिर में भगवान गणेश त्रिनेत्र रूप में विराजमान है जिसमें तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
विराजमान है गणपति का पूरा परिवार
पूरी दुनिया में यह एक ही मंदिर है जहाँ भगवान गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, दो पत्नी- रिद्दि और सिद्दि एवं दो पुत्र- शुभ और लाभ, के साथ विराजमान है।
भारत में चार स्वयंभू गणेश मंदिर माने जाते है, जिनमें रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी प्रथम है। इस मंदिर के अलावा सिद्दपुर गणेश मंदिर गुजरात, अवंतिका गणेश मंदिर उज्जैन एवं सिद्दपुर सिहोर मंदिर मध्यप्रदेश में स्थित है।
प्रतिमा का इतिहास
भगवान राम ने लंका कूच करते समय इसी गणेश का अभिषेक कर पूजन किया था। अत: त्रेतायुग में यह प्रतिमा रणथम्भौर में स्वयंभू रूप में स्थापित हुई और लुप्त हो गई।
एक और मान्यता के अनुसार जब द्वापर युग में भगवान कृष्ण का विवाह रूकमणी से हुआ था तब भगवान कृष्ण गलती से गणेश जी को बुलाना भूल गए जिससे भगवान गणेश नाराज हो गए और अपने मूषक को आदेश दिया की विशाल चूहों की सेना के साथ जाओं और कृष्ण के रथ के आगे सम्पूर्ण धरती में बिल खोद डालो। इस प्रकार भगवान कृष्ण का रथ धरती में धँस गया और आगे नहीं बढ़ पाये। मूषकों के बताने पर भगवान श्रीकृष्ण को अपनी गलती का अहसास हुआ और रणथम्भौर स्थित जगह पर गणेश को लेने वापस आए, तब जाकर कृष्ण का विवाह सम्पन्न हुआ। तब से भगवान गणेश को विवाह व मांगलिक कार्यों में प्रथम आमंत्रित किया जाता है। यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश को भारत का प्रथम गणेश कहते है।तीसरे नेत्र की मान्यता रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी दुनिया के एक मात्र गणेश है जो तीसरा नयन धारण करते है।
गजवंदनम् चितयम् में विनायक के तीसरे नेत्र का वर्णन किया गया है, लोक मान्यता है कि भगवान शिव ने अपना तीसरा नेत्र उत्तराधिकारी स्वरूप सौम पुत्र गणपति को सौंप दिया था और इस तरह महादेव की सारी शक्तियाँ गजानन में निहित हो गई।महागणपति षोड्श स्त्रौतमाला में विनायक के सौलह विग्रह स्वरूपों का वर्णन है। महागणपति अत्यंत विशिष्ट व भव्य है जो त्रिनेत्र धारण करते है, इस प्रकार ये माना जाता है कि रणथम्भौर के रणतभंवर महागणपति का ही स्वरूप है।
🏵️ ऊं गणेशाय नमः 🏵️