*सीता नवमी सोमवार पांच मई हार्दिक शुभकामनाएं*
सीता माता भगवान श्री राम की अर्द्धांगिनी है और वह मां लक्ष्मी का अवतार मानी जाती है। जब भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में अवतार लिया तो मां लक्ष्मी ने उनकी अर्द्धांगिनी के रूप में सीता का अवतार लिया। सीता माता का जन्म वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है।
इस तिथि को जानकी नवमी के नाम से जाना जाता है। जानकी नवमी या सीता नवमी का पर्व राम नवमी के एक मास बाद आता है। इस दिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रखती है। यह पर्व जानकी नवमी के रूप में भी प्रसिद्ध है।
सीता जी राजा जनक की पुत्री थी इसलिए उनको जानकी नाम से भी जाना जाता है। सीता माता पवित्रता, धैर्य और समर्पण और पतिव्रत धर्म की प्रतीक है। जहां वह राजा जनक जैसे राजा की पुत्री थी वहीं वह राजा दशरथ की पुत्रवधु थी। लेकिन उन्होंने अपने पति संग वनवास में जाने के लिए एक क्षण भी नहीं सोचा और सभी सुख सुविधाओं का त्याग कर दिया।
सीता माता राजा जनक की पुत्री थी। राजा जनक मिथिला के राजा थे। राजा जनक का वास्तविक नाम सिर ध्वज था और उनकी पत्नी का नाम सुनयना था।
राजा जनक अपनी प्रजा के सुख-दुख में उनके साथ थे। राजा जनक के शासन काल में एक बार भीषण अकाल पड़ा तो ज्योतिषयों ने बताया कि अगर राजा जनक स्वयं हल चलाए तो जो गृह दोष राज्य पर चल रहा है उससे मुक्ति होगी और भारी वर्षा होगी।
राजा जनक ने राज्य की समृद्धि के लिए स्वयं हल चलाने का निश्चय किया ताकि उनकी प्रजा को कष्टों से मुक्ति मिल सके। जब राजा जनक हल चला रहे थे तो उनकी हल किसी धातु की वस्तु से टकरा गई। जब उस स्थान पर खुदाई की गई तो धरती से एक पेटी मिली जिस में एक नवजात कन्या थी। हल की सीत से टकराने के कारण कन्या पेटी मिली थी इसलिए कन्या का नाम सीता रखा गया। राजा जनक और सुनयना ने उस कन्या को अपना लिया और अपनी पुत्री मान लिया। राजा जनक की पुत्री होने के कारण उनका नाम जानकी पड़ा।
राजा जनक ने सीता जी को शस्त्र विद्या, पाक कला, वेद और उपनिषदों की शिक्षा दिलाई। सीता जी ने बचपन में भगवान शिव का पिनाक धनुष उठा लिया था तब राजा जनक को आभास हो गया कि यह कोई दिव्य कन्या है इसलिए उस दिन उन्होंने संकल्प लिया कि उनकी पुत्री का विवाह उसके साथ होगा जो धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा।