नारद जयंती – जानिए कौन थे देवर्षि नारद और उनके जीवन के बारें कुछ रोचक बातें
जब कभी किसी के मुहं से नारायण नारायण सुनते हैं तो सबसे पहले दिमाग में नारद मुनि की ही छवि नज़र आती है। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि हर साल ज्येंष्ठि महीने की कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को नारद जयंती को धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं, हमारे हिंदू शास्त्रों के अनुसार नारद को ब्रह्मा के सात मानस पुत्रों में से एक माना गया है। बता दें कि नारद को देवताओं का ऋषि माना जाता था, और इसी वजह से उन्होंंने देवर्षि भी कहा जाता है। मान्यता ऐसी है कि नारद जो थे वह तीनों लोकों में विचरण करते रहते थे।.
नारद मुनि कौन हैं?
हिंदू मान्यताओं की मानें तो न नारद मुनि का जन्म सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी की गोद से ही हुआ था। कहते हैं कि कठिन तपस्या के बाद नारद को ब्रह्मर्षि का पद प्राप्त हुआ था। नारद बहुत ज्ञानी थे और इसी वजह से राक्षस हो या फिर कोई देवी-देवता सभी उनका बेहद आदर और सत्कार करते थे। देवर्षि नारद को महर्षि व्यास, महर्षि वाल्मीकि और महाज्ञानी शुकदेव का भी गुरु माना जाता है।
नारद मुनि को क्यों मिला था श्राप :
शास्त्रों में इस बात का उल्लेख है कि ब्रह्राजी ने नारद जी से सृष्टि के कामों में हिस्सा लेने की बात कही और विवाह भी करने के लिए भी कहा, लेकिन उन्होंने अपने पिता की आज्ञा का पालन नहीं किया। ऐसे में बह्राजी को काफी क्रोध आया और उन्होंने देवर्षि नारद को आजीवन अविवाहित रहने का ही श्राप दे दिया।
यही नहीं, पुराणों में ऐसा भी लिखा गया है कि राजा प्रजापति दक्ष ने नारद को श्राप दिया था कि वह दो मिनट से ज्यादा कहीं रुक नहीं पाएंगे औऱ शायद यही कारण है कि नारद अक्सर यात्रा करते रहते थे।
नारद मुनि किसके थे भक्त :
देवर्षि नारद भगवान विष्णु के परम भक्त थे और श्री हरि विष्णु् को भी नारद बहुत प्रिय थे। नारद हमेशा अपनी वीणा की मधुर तान से विष्णु जी का गुणगान करते रहते थे और साथ ही अपने मुख से हमेशा नारायण-नारायण का जप करते हुए विचरण किया करते थे।
कहा तो यह भी जाता है कि नारद अपने आराध्या विष्णु के भक्तो की मदद भी खूब करते थे। बता दें कि नारद ने ही भक्त प्रह्लाद, भक्त अम्बरीष और ध्रुव जैसे भक्तों को उपदेश देकर भक्तिमार्ग में प्रवृत्त किया था।
नारद कैसे हैं परम ज्ञानी :
आपको शायद ही इस बात की जानकारी है कि देवर्षि नारद को श्रुति-स्मृति, इतिहास, पुराण, व्याकरण, वेदांग, संगीत, खगोल-भूगोल, ज्योतिष और योग जैसे कई शास्त्रों का प्रकांड विद्वान माना जाता है। देविर्षि नारद के सभी उपदेशों का भी निचोड़ है – सर्वदा सर्वभावेन निश्चिन्तितै: भगवानेव भजनीय:। अर्थात् सर्वदा सर्वभाव से निश्चित होकर केवल भगवान का ही ध्यान करना चाहिए।
नारद जयन्ती पर कुछ विशेष उपाय हैं, जिनमें से आप कोई एक, अधिक, या सभी कर सकते हैं :
कॉपी पेन्सिल और धार्मिक किताबे और वस्त्र दान करे.
दूसरो का आदर करे खास तौर पर अपने बड़ो का और छोटों को परेशान न करें.
शास्त्रों के अनुसार ‘वीणा’ का बजाना शुभता का प्रतीक है, इसलिए नारद जयंती पर ‘वीणा’ का बजाना और दान श्रेष्ठ माना गया है। किसी भी कामना से नारद जयंती के दिन ‘वीणा’ का दान करने से मनोकामना पूर्ण होगी।
कुछ आलू उबाल लें. उन्हें हल्दी लगा कर, या तो गाय को खिलाएं, या मन्दिर में दें.