पंचम गुरू अरजन देव जी का शहीदी दिवस गुरुद्वारा बाबा नामदेव में बड़ी श्रद्धा से मनाया गया

 

 

 

कानपुर,दिनांक 30 मई को शहीदों के सरताज शान्ति के पुंज वाणी के बोहिंथ पंचम गुरू अरजन देव का शहीदी दिवस गुरुद्वारा बाबा नामदेव में बड़ी श्रद्धा से मनाया गया। सुबह के दीवान ने स्त्री सत्संग बाबा नामदेव द्वारा संगत के साथ 40 दिन से चले आ रहे! सुखमनी साहिब के पाठ की समाप्ति करी। हजूरी रागी भाई रविन्दर सिंह द्वारा गुरु अर्जुन देव जी के शबद व उनकी शहादत के बारे में संगत को अवगत कराया।शाम के विशेष दीवान में कानपुर के समस्त गुरुद्वारों की स्त्री सत्संग द्वारा गुरूग्रंथ साहिब को नतमस्तक हो गुरू की वाणी व जपुजी साहिब के पाठ कर गुरू के प्रति श्रद्धांजली अर्पित की गयीं बताया गया कि गुरू अरजन देव को मुगल सल्तनत के दिल्ली तखत के जहांगीर द्वारा कुछ शर्तों के अधीन विवश होने को कहा। गुरू ने परमात्मा के बनाये हुए उसूलों के खिलाफ कुछ भी मानने को इंकार किया उन्होनें कहा कि ईश्वर ने जो नियम बनाये हैं उसके विपरीत चलना नामंजूर है।1218 के चंगेज खाँ के याशा कानून के अन्र्तगत कि जो ईश्वर के प्रति श्रद्धा रखता है उसके ही कहने पे कार्य करता है उसको तसीहे (यातना देकर) उसके शरीर में खून की एक भी बूंद नहीं रहनी चाहिए क्योंकि उसके शरीर का रक्त और शहादत के लिए लोगों को उत्साहित करेगा। लगभग 5 दिन पहले दिन गुरू जी को लाहौर में कोठी में रखकर मूखा प्यासा रखा गया दूसरे दिन गरम रेत में उनको बैठाया गया तीसरे दिन देग में पानी उबालकर खौलते पानी में उनको डाला गया चौथे दिन उनको जलती ली के लाल तवे में बैठाकर सिर में गरम रेता डाला गया पर यह यातनायें भी गुरू जी को डिगा न सकी और अगले दिन रावी नदी के किनारे जपती साहिब का पाठ करके “तेरा किया मीठा लागे, हरि नाम पधारत नानक मांगे” कहकर रावी नदी में अपनी शहदात दे दी।

अर्थात कुसुम्ब रंग का ठंडे पानी से रंग उतर जाता है पर मजीठा रंग गरम पानी से भी नहीं उतरता। अर्थात गुरू जी को बादशाह जहांगीर की कोई भी शर्त न मजूर हुई और उन्होनें शहादत का जाम पीकर हिन्दुस्तान में मुगुल समाज के खिलाफ शहादत दे दी और शहीदों के लिए एक मिसाल पैदा कर दी। इसीलिए उनकों शहीदों का सरताज कहा जाता है। इस अवसर पर सुबह छोले का प्रसाद व ठण्डी छबील भी लगायी गयीं। शाम को दीवान समाप्ति उपरान्त गुरू के अटूट लंगर बरताये गये साथ में स्वर्गीय सतपाल सिंह की (ट्रस्टी गुरूद्वारा गुमटी) की याद में आयी हुई! सभी संगतों का सम्मान स्वरूप भेट दी गयीं।विशेष रूप से अशोक अरोड़ा, गुरदीप सहगल, चरनजीत सिंह,श्रीचन्द्र असरानी, सुरजीत सिंह ओबराय,अमरजीत सिंह पम्मी, करमजीत सिंह बावा, आदि लोग रहे!

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