गंगा गौ मुख रूपी ग्लेशियर से निकलती है। इस स्थान पर इन्हें भगीरथी भी कहा जाता है। यहां से निकलकर गंगा जब अलकनंदा से मिलती हैं तो वह गंगा कहलाती है। उत्तराखंड के उत्तर काशी जिले में हिमालय के शिखरों से निकलने वाली गंगा की उद्गम स्थल गोमुख से गंगोत्री की दूरी लगभग 18 किलोमीटर है।
गंगोत्री स्थित गौड़ी कुण्ड को देखने से लगता है कि शिव जी ने निश्चित ही अपनी विशाल जटाओं में गंगा को बांध लिया है। गौड़ी कुण्ड के इस दिव्य दृश्य को देख कर दर्शक आनंद विभोर हो जाता है। गौमुख को देखने से ऐसा लगता है जैसे देवाधिदेव महादेव ने अपनी स्वर्णिम जटा को गोल में घुमाकर इस गौड़ी कुण्ड में एक लट से गंगा को इस कुण्ड में निचोड़ दिया है।
यहाँ से पहाड़ों के सीना को चीरती हुई आगे की ओर बढ़ती हैं और यहाँ इसे भागीरथी के नाम से पुकारा जाता है। वैसे देवप्रयाग में सात नदियों की धारा मिलकर गंगा बनती है। इन सब श्रेष्ठ जीवन दायनी देव नदियों के नाम क्रमश: भागीरथी, जाह्नवी, भीलगंगा, मंदाकिनी, ऋषि गंगा, सरस्वती और अलकनंदा है। ये सभी देव नदियां देव प्रयाग में आकर मिलती हैं।
गोमुख पर लगातार रिसर्च करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार ग्लेशियर का एक टुकड़ा टूटने के कारण गोमुख बंद हो गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसा भी नहीं है कि गोमुख के बंद हो जाने से गंगा में पानी का प्रवाह बंद हो गया हो। गोमुख का क्षेत्रफल 28 किलोमीटर में फैला हुआ है। ये समुद्रतल से 3,415 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसमें गंगोत्री के अलावा नन्दनवन, सतरंगी और बामक जैसे कई छोटे-छोटे ग्लेशियर स्थित हैं। अब गंगा की मुख्य धारा नन्दन वन वाले ग्लेशियर से निकल रही है। गोमुख का बंद होना सबको चकित कर रहा है और गंगोत्री पर शोध करने वाले वैज्ञानिक इसकी पड़ताल करने में जुटे हैं।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि गोमुख से निकलने वाली नदी की धारा की दिशा बदल रही है। गोमुख एक ग्लेशियर है और पहले इससे सीधे-सीधे भागीरथी निकलती थीं लेकिन अब इसके बाएं तरफ से निकल रही हैं। गोमुख में एक झील बन गयी है जिसके कारण ये परिवर्तन आया है। इस झील के कारण गंगा लगातार बदली हुई दिशा में बह रही हैं और इसका अंतिम परिणाम गोमुख के नष्ट होने के रूप में हो सकता है।