ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के लिए अस्वस्थ होकर एकांतवास में चले जाते हैं। इसे अनासरा या ज्वर लीला कहा जाता है। इस दौरान जगन्नाथ मंदिर, पुरी के पट बंद रहते हैं और केवल सेवकगण (दायित्वगण) ही प्रभु की सेवा कर सकते हैं।
ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में प्रभु अलारनाथ मंदिर में भक्तों को दर्शन देते हैं।
इस दिव्य परंपरा की कथा भगवान के परम भक्त माधव दास से जुड़ी हुई है। एक बार माधव दास अत्यंत अस्वस्थ हो गए थे। कोई सेवा के लिए नहीं था। ऐसे में स्वयं भगवान जगन्नाथ ने उनकी सेवा की।
जब माधव दास को आभास हुआ कि उनकी सेवा स्वयं प्रभु कर रहे हैं, तो उन्होंने हाथ जोड़कर विनती की—
“प्रभु! आप मेरी सेवा क्यों कर रहे हैं? आप तो भगवान हैं, मुझे सीधा स्वस्थ क्यों नहीं कर देते?”
भगवान ने मुस्कराकर उत्तर दिया—
“तुम्हारे भाग्य में अभी 15 दिन की अस्वस्थता शेष है, मैं उसके बाद तुम्हें स्वस्थ कर दूंगा।”
किंतु भक्त की हठ के आगे भगवान झुक गए। उन्होंने तत्काल माधव दास को तो स्वस्थ कर दिया,
परंतु उनकी शेष रोग स्वयं अपने ऊपर ले ली।
क्योंकि कर्म और भाग्य के विधान में स्वयं भगवान भी सीधे हस्तक्षेप नहीं करते — यह ही विधि का विधान है।
तभी से प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों तक अस्वस्थ रहते हैं। वे अपने भक्त माधव दास की पीड़ा को हर वर्ष अपने ऊपर लेते हैं — यह भक्ति की चरम सीमा का प्रतीक है और फिर, रथ यात्रा के दिन प्रभु पूर्ण आरोग्य होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं।
इस वर्ष भगवान जगन्नाथ 26 जून को पूर्ण स्वस्थ होकर अपने रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देंगे