*हज़रत उमर के खिलाफत का दौर इस्लाम के इतिहास में एक स्वर्णिम काल था।*

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कानपुर 23 जून इस्लाम के दूसरे खलीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर बिन खत्ताब फारुके आज़म (रजि०अन०) की शहादत पर खानकाहे हुसैनी हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह०अलै०) की दरगाह मे बाद नमाज़े ज़ोहर यौम ए शहादत मनाकर खिराजे ए अकीदत पेश की गयी।

हज़रत ख्वाजा सैय्यद दाता हसन सालार शाह (रह० अलै०) की मज़ार पर गुलपोशी इत्र केवड़ा संदल पेश किया गया उसके बाद शोरा ए कराम ने नात मनकबत पेश की हज़रत उमर फारुक की शहादत पर खिराज ए अकीदत पेश करते हुए उलेमा ए दीन ने कहा हजरत उमर वो पहले शख्स थे जिन्होने अपने खिलाफत के दौर में शहरों में काज़ी की नियुक्ति का हुक्म दिया उस ज़माने की सुपर पावर सल्तनत ए रोम और शहंशाह ए फारस को चकनाचूर कर दिया उमर वो जो गुलाम को सवारी पर बैठा कर खुद सवारी को लगाम पकड़ कर पैदल चले। हज़रत उमर आवाम की भलाई के बारे में इतने चिंतित थे कि वह रात में मदीना शहर में भेष बदलकर घूमते थे, ताकि खुद देख सकें कि किसी को मदद की जरुरत तो नही।

हज़रत उमर फारुक को 26 ज़िलहिज्जा एक फ़ारसी गुलाम ने चाकू मार दिया जब वे मस्जिद में नमाज़ पढ़ रहे थे। यह जानलेवा साबित हुआ 63 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। जिनकी खिलाफत का दौर इस्लाम के इतिहास में एक स्वर्णिम काल था।

खानकाहे हुसैनी के साहिबे सज्जादा इखलाक अहमद डेविड चिश्ती ने कहा कि हज़रत उमर फारुक के बताये रास्ते पर चलने व नमाज़ की पाबंदी पर ज़ोर दिया।

खिताब के बाद नज़र उमर फारुक व सलातो सलाम पेशकर दुआ हुई दुआ में अल्लाह से उमर फारुक के सदके में मुल्क की खुशहाली तरक्की देने, दुनियां में शांति कायम होने, दहशतगर्द का खात्मा होने की दुआ हुई।

 

नज़र व दुआ मे इखलाक अहमद डेविड चिश्ती, हाजी गौस रब्बानी, परवेज आलम वारसी, मोहम्मद शाहिद चिश्ती, एजाज रशीद, मोहम्मद हफीज चिश्ती, आफताब आलम, परवेज सिद्दीकी, मोहसिन अहमद, मोहम्मद जावेद, जमालुद्दीन फारुकी, अफज़ाल अहमद आदि लोग मौजूद थे।

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