*रंगनाथ स्वामी मन्दिर , श्रीरंगम में स्थित हिन्दुओं का एक पवित्र धार्मिक स्थल है।यह मन्दिर हिन्दू देवता भगवान विष्णु को समर्पित है। इसे भूलोक का वैकुंठ या भगवान विष्णुजी का धाम माना जाता है।*

यहाँ भगवान विष्णु की पूजा श्री रंगनाथन के रूप में की जाती है। यह मन्दिर कावेरी नदी के तट पर स्थित है। इस मन्दिर के निर्माण से संबंधित कई प्राचीन कहानियाँ जुड़ी हुई हैं ।

हिन्दू मान्यता के अनुसार श्री रंगनाथन भगवान , विष्णु का ही अवतार हैं। एक प्रचलित कथा के अनुसार वैदिक काल में गोदावरी नदी के तट पर गौतम ऋषि का आश्रम था। उस समय इन क्षेत्रों में जल की काफी कमी थी। एक दिन जल की तलाश में कुछ ऋषि गौतम ऋषि के आश्रम जा पहुँचे।

 

अपनी यथाशक्ति अनुसार गौतम ऋषि ने उनका आदर सत्कार कर उन्हें भोजन कराया। परंतु ऋषियों को उनसे ईर्ष्या होने लगी। उर्वरक भूमि की लालच में ऋषियों ने मिलकर छल द्वारा गौतम ऋषि पर गौ हत्या का आरोप लगा दिया तथा उनकी सम्पूर्ण भूमि हथिया ली। इसके बाद गौतम ऋषि ने श्रीरंगम जाकर श्री रंगनाथ की आराधना की और उनकी सेवा की।

 

गौतम ऋषि की सेवा से प्रसन्न होकर श्री रंगनाथ ने उन्हें दर्शन दिया और पूरा क्षेत्र उनके नाम कर दिया। माना जाता है कि गौतम ऋषि के आग्रह पर स्वयं ब्रह्माजी ने इस मन्दिर का निर्माण किया था।

यह मन्दिर तिरुचिरापल्ली शहर के ‘श्रीरंगम’ नामक द्वीप पर बना हुआ है जिसे ‘भू-लोक वैकुण्ठ’ कहा जाता है। भगवान् श्री रंगनाथ स्वामी (भगवान् श्री हरि विष्णु शेषशैय्या पर लेटे हुए) को समर्पित यह मन्दिर है ।

 

आइये इस मन्दिर के बारे में कुछ अनजाने और महत्वपूर्ण तथ्यों को जानते हैं ।श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि– श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर को ‘श्रीरंगम मन्दिर’, तिरुवरंगम तिरुपति’, पेरियाकोइल’, ‘भूलोक वैकुण्ठ’ आदि विभिन्न नामों से भी जाना जाता है ।

इस विशाल मन्दिर परिसर का क्षेत्रफल लगभग 156 एकड़ है

 

श्रीरंगम मन्दिर का परिसर 7 प्रकारों और 21 गोपुरमों से मिलकर बना हुआ है । इस मंदिर का मुख्य गोपुरम यानी मुख्य द्वार 236 फीट (72 मी) ऊँचा है , इसे ‘राजगोपुरम’ कहा जाता है ।

मन्दिर परिसर की दीवारों को हर्बल और वनस्पति रंगों के उपयोग से उत्तम चित्रों के साथ चित्रित किया गया है ।

इस मन्दिर में 1000 स्तंभों ( वास्तव में 953 ) का हॉल एक नियोजित थियेटर की तरह संरचना का एक अच्छा उदाहरण है , इन स्तंभों में कुछ मूर्तियाँ जिसमें जंगली घोड़े और बड़े पैमाने पर बाघों के घूमते हुए सिर जो कि प्राकृतिक लगते है , को बनाया गया हैं ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस मदिर में देवताओं की लंबे समय तक भगवान राम के द्वारा पूजा की जाती थी और रावण पर राम जीत के बाद यहाँ के देवताओं को राजा विभीषण को सौंप दिया गया था।

 

वापस लंका जाने के रास्ते में , भगवान विष्णु विभीषण के सामने उपस्थित हुए और इस स्थान पर रंगनाथन के रूप में रहने की अपनी इच्छा को व्यक्त किया और तब से कहा जाता है कि भगवान् विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहाँ वास करते हैं ।

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