*गोकर्ण से हिन्दू धर्म के लोगों की गहरी आस्थाएँ जुड़ी हैं। साथ ही इस धार्मिक जगह के खूबसूरत बीचों सागर तटों के आकर्षण से भी लोग गोकर्ण खींचे चले आते हैं। गोकर्ण का शाब्दिक अर्थ है गाय का कान और पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव का जन्म इसी स्थान पर गाय के कान से हुआ था।साथ ही एक धारणा के अनुसार गंगावली और अघनाशिनी नदियों के संगम पर बसे इस गाँव का आकार भी गाय के कान जैसा ही है*
*यह स्थल दक्षिण का काशी के नाम से भी प्रसिद्ध है और शिव के आत्मलिंग भगवान शिव की आत्मा के निवास स्थान के रूप में माना जाता है तथा यह सात मुक्ति क्षेत्रों में से भी एक है। यहाँ दर्शन के लिये कई मन्दिर हैं जिनमें गोकर्ण का महाबलेश्वर मन्दिर यहाँ का सबसे पुराना एवं मुख्य मन्दिर है जो भगवान शिव को समर्पित है*
कहा जाता है कि यहाँ महाबलेश्वर मन्दिर में स्थापित छह फीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन 40 साल में सिर्फ एक बार होते हैं कहा जाता है कि भगवान शिव ने यह शिवलिंग रावण को उसके साम्राज्य की रक्षा करने के लिए दिया था , लेकिन भगवान गणेश और वरुण देवता ने कुछ चाल चलकर रावण से यह शिवलिंग यहाँ स्थापित करवा दिया तथा तमाम कोशिशें करने के बावजूद भी रावण इसे निकाल नहीं पाया। तभी से यहाँ भगवान शिव का वास माना जाता है।गोकर्ण का एक और महत्त्वपूर्ण मन्दिर महागणपति मन्दिर है , जो भगवान गणेश को समर्पित है।
गोकर्ण नाम की उत्पत्ति की एक कथा लंका के रावण से सम्बंधित है।
कठोर तपस्या के उपरान्त रावण भगवान शिव के आत्मलिंग ( भगवान शिव की आत्मा ) को उठाकर कैलाश पर्वत से लंका ले जा रहा था । भगवान शिव का कड़ा निर्देश था कि वह उस आत्मलिंग को उसी स्थान पर रखे जहाँ वह उसे स्थापित करना चाहता है। जैसे ही वह गोकर्ण पहुॅंचा , उसके संध्यावंदन का समय हो चुका था। उसी समय भगवान गणेश उसके समक्ष एक नन्हे बटुक के रूप में प्रकट हुए। संध्यावंदन समाप्ति तक रावण ने गणेश को वह आत्मलिंग सौंप दिया। किन्तु नन्हा बटुक आत्मलिंग का भार अधिक क्षण नहीं उठा पाया तथा उसे धरती पर रख दिया। इससे क्रुद्ध होकर रावण ने गणेश के शीष पर प्रहार किया।आज भी वह आत्मलिंग गोकर्ण के प्रमुख मन्दिर , गोकर्ण महाबलेश्वर में स्थापित है। समीप स्थित महागणपति मन्दिर में गणेशजी की प्रतिमा के शीष पर उस प्रहार का चिन्ह है।
दूसरी कथा अयोध्या के महाराज सगर की है , जिनके ६०,००० पुत्रों को कपिलमुनि ने अग्नि में भस्म कर दिया था। महाराज सगर के वंशज भागीरथ ही गंगा को धरती पर लाये थे। ऐसी मान्यता है कि किसी काल में अनेक असुर समुद्र के भीतर निवास करते थे। रात्रि के समय वे बाहर आकर मानवों पर नाना प्रकार के अत्याचार करते थे। त्रस्त होकर वे अगस्त्य ऋषि के समक्ष गए तथा उनसे समुद्र का सम्पूर्ण जल ग्रहण करने का आग्रह किया ताकि असुर वहाँ से चले जाएँ। अगस्त्य ऋषि ने सागर का सम्पूर्ण जल पी लिया जिससे समुद्र तल सूख गया। समुद्र देवता चिंतित हो गये तथा उन्होंने अगस्त्य ऋषि से सम्पूर्ण जल लौटाने का आग्रह किया। अगस्त्य ऋषि ने असमर्थता जताई क्योंकि वे समूचे जल को पचा चुके थे। तदनंतर समुद्र देव गोकर्ण आये तथा एक शिवलिंग की रचना कर भगवान् शिव की आराधना करने लगे, प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे अपनी इच्छा व्यक्त करने के लिए कहा। समुद्र देव ने अपना सम्पूर्ण जल पुनः प्राप्त करने की अभिलाषा की। भगवान शंकर ने कहा कि जब महाराज सगर के वंशज, भागीरथ गंगा को धरती पर लायेंगे , तब उसे सागर भी उसका जल पुनः प्राप्त हो जाएगा। इसी कारण गोकर्ण के जल को गंगा के समान पावन माना जाता है। इस सागरेश्वर शिवलिंग को आप महाबलेश्वर मन्दिर के बाहर , एक छोटे से मन्दिर के भीतर देख सकते हैं।
गोकर्ण से सम्बंधित तीसरी कथा में जमदग्नि एवं रेणुका के पुत्र परशुराम का उल्लेख है ; जिन्होंने परशु से वार कर समुद्र के जल को पीछे धकेल दिया था , जिसके कारण कोंकण तट अस्तित्व में आया। ऐसी मान्यता है कि परशुराम ने गोकर्ण में खड़े होकर समुद्र की ओर अपना परशु फेंका था। वस्तुतः , यह कथा आप कोंकण तट के लगभग सभी क्षेत्रों में सुनेंगे
महाबलेश्वर मन्दिर के भीतर जमदग्निश्वर नामक एक शिवलिंग भी स्थापित है जो आप देख सकते हैं।
चौथी कथा के अनुसार दिव्य गौमाता सुरभि ने यहीं तपस्या की थी। उन्होंने जिस शिवलिंग का अभिषेक किया था, उसे सुर्भेश्वर शिव कहते हैं।
महाबलेश्वर मन्दिर गोकर्ण का मुख्य मन्दिर है। इसके भीतर आत्मलिंग स्थापित है। आत्मलिंग को चाँदी के आवरण से ढका है जिसके ऊपर स्थित छिद्र के द्वारा आप लिंग को स्पर्श कर सकते हैं। विशेष समयकाल में आप आवरण विहीन लिंग के भी दर्शन कर सकते हैं।
यह गोकर्ण का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। मन्दिर के भीतर देवी एवं गणेश के भी विग्रह है।
मन्दिर में प्रवेश करने के लिए पुरुषों को केवल धोती एवं उपवस्त्र धारण करना पड़ता है। स्त्रियाँ कोई भी भारतीय परिधान धारण कर सकती हैं।
गोकर्ण धार्मिक तीर्थ स्थल में कई मन्दिर , गुरु आश्रम एवं समुद्र तट दर्शनीय है । कुड्ले समुद्रतट , ॐ समुद्रतट भी दर्शनीय तट है।
यह शहर खूबसूरत समुद्र तटों और हरे-भरे पहाड़ों के बीच बसा है , जो साहसी और पर्यटकों दोनों को आकर्षित करता है।
कैसे पहुँचे
कन्याकुमारी — पनवेल हाईवे पर , उडुपी से गोकर्ण 177
कुमटा से 32 कि.मी. दूर है एवं गोकर्ण से , करवर 69 ,
पणजी ( गोवा ) 162 कि.मी.है ।
