#कानपुर नगर
*कानपुर नगर निगम का ₹10 लाख के विज्ञापन शुल्क का नोटिस, व्यापारी बोले- “क्या व्यापारी होना अपराध है?”*
कानपुर। दीपावली के त्योहार पर सरकारी नीतियों के प्रचार और अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने की कोशिश ने एक स्थानीय व्यापारी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। कानपुर नगर निगम के विज्ञापन विभाग ने राजा मार्केट, पटेल नगर स्थित महेश ज्वैलर्स पर 10 लाख रुपये का विज्ञापन शुल्क जमा करने का नोटिस जारी किया है। व्यापारी का कहना है कि यह रकम उनकी पूंजी के बराबर है और इसके लिए उन्हें अपनी किडनी तक बेचनी पड़ सकती है।
*क्या है मामला?*
महेश ज्वैलर्स ने दीपावली के दौरान अपने प्रतिष्ठान के सामने, एक नाले की सीमा के अंदर, दो अस्थायी होर्डिंग लगाए थे। इन होर्डिंग्स पर जीएसटी में कमी जैसी केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार भी किया गया था। व्यापारी के अनुसार, यह होर्डिंग न तो किसी राष्ट्रीय राजमार्ग, लिंक रोड पर थे और न ही उन्होंने यातायात में किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न की।
*नोटिस में क्या दावा?*
27 अक्टूबर, 2025 को जारी नोटिस (पत्रांक-डी/526/प्र०अ० (विज्ञापन)/2025-26) में नगर निगम का कहना है कि व्यापारी ने होर्डिंग लगाने के लिए विज्ञापन विभाग या यातायात विभाग से कोई अनुमति या अनापत्ति प्रमाण-पत्र प्राप्त नहीं किया। निगम ने दावा किया है कि यह कार्य कानपुर नगर निगम (आकाश चिन्ह, विज्ञापनों का विनियमन और नियंत्रण एवं अनुज्ञप्ति शुल्क निर्धारण और वसूली) उपविधि-2020 के नियम 28 और 29 का उल्लंघन है। नोटिस में व्यापारी से होर्डिंग हटाने और 10 लाख रुपये का शुल्क जमा करने को कहा गया है, अन्यथा विधिक कार्रवाई और होर्डिंग हटाने की चेतावनी दी गई है।
*व्यापारी का पक्ष: “उत्पीड़न और दोहरा मापदंड”*
व्यापारी ने इस कार्रवाई को ‘उत्पीड़न’ और ‘अच्छे प्रशासन’ के नाम पर कलंक बताया। उन्होंने दावा किया कि नोटिस देने आए अधिकारियों ने धमकी दी, “कल से अभियान चलेगा, बुलडोज़र लेकर आएंगे अपनी फौज के साथ… पैसा जमा कर दो!”
उन्होंने सवाल उठाया कि जब शहर में नालों पर स्थायी पक्के मकान और सड़क किनारे अवैध निर्माण बिना रोक-टोक खड़े हैं, तो निगम की नजर सिर्फ एक छोटे व्यापारी की अस्थायी होर्डिंग पर ही क्यों जाती है? उनका आरोप है कि इसका कारण यह है कि उन मकानों से हाउस टैक्स वसूला जा रहा है, जबकि व्यापारियों से कमर्शियल टैक्स लेने के बाद भी उन्हें इस तरह की कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा है। उनका मानना है कि ईमानदारी से व्यापार करना अब सबसे बड़ा ‘अपराध’ बनता जा रहा है।
*सवाल: क्या है उपविधि-2020 का नियम 28 और 29?*
ये नियम नगर निगम की सीमा में विज्ञापन लगाने, उनके आकार, स्थान और शुल्क को नियंत्रित करते हैं। बिना अनुमति के विज्ञापन लगाना इन नियमों का उल्लंघन माना जाता है, जिसके लिए भारी जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि, व्यापारी का तर्क है कि एक छोटी, अस्थायी और गैर-बाधक होर्डिंग के लिए 10 लाख रुपये की मांग अनुपातहीन और दमनकारी है।
*अगले कदम:*
व्यापारी ने कानूनी सलाह लेनी शुरू कर दी है और संभवतः नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों या अदालत का रुख करेंगे। उनका कहना है कि वह निगम को शुल्क तो जमा करा देंगे, लेकिन नियमों में पारदर्शिता और उचित मांग की अपेक्षा करते हैं।
यह मामला एक बार फिर स्थानीय निकायों द्वारा व्यापारियों पर लगाए जाने वाले अत्यधिक शुल्क और दोहरे मापदंड की ओर इशारा करता है।
