*भगवान दत्तात्रेय ,महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र है , इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है और माता सती अनुसूया है। कर्नाटक राज्य के गुलबर्गा जिले के गाणगापुर जो कि तुलजापुर से 138 कि.मी. , पंढरपुर से 184 कि.मी. गुलबर्गा से 38 कि.मी. दूर है जो भगवान दत्तात्रेय का जागृत क्षेत्र है। भगवान दत्तात्रेय जिनमें तीनों शक्तियाँ जैसे ब्रह्मा , विष्णु और महेश समाई हुई हैं , उनका जागृत स्थल गाणगापुर है। ऐसा माना जाता है कि यहीं पर भगवान दत्तात्रेय ने अवतार लिया था। यहाँ आने वालों को यहाँ भगवान दत्तात्रेय के जागृत होने की अनुभूति होती है।*
*पौराणिक कथा*
एक बार की बात है माँ अनुसूया , त्रिदेव ब्रह्मा , विष्णु , महेश जैसे पुत्र की प्राप्ति के लिए कड़े तप में लीन हो गईं , जिससे तीनों देवों की अर्धांगिनियाँ सरस्वती , लक्ष्मी और पार्वती को जलन होने लगी।तीनों ने अपनी पतियों से कहा कि वे भू लोक पर जाएं और वहाँ जाकर देवी अनुसुया के सतीत्व की परीक्षा लें।ब्रह्मा , विष्णु और महेश संन्यासियों के वेश में अपनी जीवनसंगिनियों के कहने पर देवी अनुसुया के तप की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी लोक पर
आए।अनुसुया के पास जाकर संन्यासी के वेश में आए त्रिदेव ने उन्हें भिक्षा देने को कहा , लेकिन भिक्षा के साथ उन्होने एक शर्त भी रखी ।अनुसुया से त्रिदेव ने कहा कि वह भिक्षा मांगने आए हैं लेकिन उन्हें भिक्षा उनके सामान्य रूप में नहीं बल्कि अनुसुया की नग्न अवस्था में चाहिए।अर्थात देवी अनुसुया उन्हें तभी भिक्षा दे पाएंगी , जब वह त्रिदेव के समक्ष नग्न अवस्था में उपस्थित होंगी ।त्रिदेव की ये शर्त सुनकर अनुसुया पहले तो हड़बड़ा गईं लेकिन फिर थोड़ा संभलकर उन्होंने मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित जल उन तीनों संन्यासियों पर डाला।पानी की छींटे पड़ते ही ब्रह्मा , विष्णु , महेश तीनों ही शिशु रूप में बदल गए। शिशु रूप लेने के बाद अनुसुया ने उन्हें भिक्षा के रूप में स्तनपान करवाया तथा तीनो को उठाकर पालने में सुला दिया ।अनुसुया के पति अत्रि जब घर वापस आए तब अनुसुया ने उन्हें तीनों बालकों का राज बताया। अत्रि तो पहले ही अपनी दिव्य दृष्टि से पूरे घटनाक्रम को देख चुके थे।अत्रि ने तीनों बालकों को गले से लगा लिया और अपनी शक्ति से तीनों बालकों को एक ही शिशु में बदल दिया , जिसके तीन सिर और छ: हाथ थे।ब्रह्मा , विष्णु , महेश के स्वर्ग वापस ना लौट पाने की वजह से उनकी पत्नियाँ चिंतित हो गईं और स्वयं देवी अनुसुया के पास आईं।सरस्वती , लक्ष्मी , पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली और त्रिदेव अपने वास्तविक रूप में आ गए।अनुसुया और अत्रि से प्रसन्न और प्रभावित होने के बाद त्रिदेव ने उन्हें वरदान के तौर पर दत्तात्रेय रूपी पुत्र प्रदान किया , जो इन तीनों देवों का अवतार था।दत्तात्रेय का शरीर तो एक था लेकिन उनके तीन सिर और छ: भुजाएँ थीं। विशेष रूप से दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि गाणगापुर में ही भगवान दत्तात्रेय ने अवतार लिया था । जिस दिन दत्तात्रेय का जन्म हुआ आज भी उस दिन को हिन्दू धर्म के लोग दत्तात्रेय जयंती के तौर पर बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।
