नंदी का लगभग पांच सौ साल पुरानी तपस्या अपने पूर्णाहुति पर पहुँचने को है। कुछ दिनों की प्रतीक्षा और शेष है। नंदी का हृदय बाल सुलभ हो गया है, वह उसी आतुरता से विश्वेश्वर के आने की राह को निर्निमेष निहारते हैं जैसे बचपन में माँ की बाट निहारते थे। मन तो करता है कि उठ कर महादेव के पास चले जाएँ पर तप और कर्तव्य की मर्यादा में बंधे है।

 

कितने भाव मन में घुमड़ रहे हैं, महादेव के बाहर आने के उल्लास की दीप्ति नंदी के मुख मंडल पर परिलक्षित हो रही है। जैसे राम के वन से आने का समाचार सुनकर माता कौशल्या की भाव गति हुई होगी, जैसे भवानी सीता को हनुमान जी ने प्रभु के आने का समाचार दिया होगा तो उनकी भाव गति हुई होगी वैसे ही भाव गति आज नंदी की है। एक आस कि ‘प्रभु आयेंगे’ का मंत्र जाप करते करते वह दिन आ पहुँचा है जब प्रभु ने आने के संकेत स्पष्ट दिए है।

 

रह रह कर नंदी को महंत पन्ना का ध्यान आ रहा है वह आज होते तो महादेव के लिए थाल सजा रहे होते, श्रृंगार गौरी के साथ भगवान शिव के अभिषेक का प्रबंध कर रहे होते। पूरा प्रांगण बेलपत्र, गंगाजल, सूर्यपुष्प, पंचामृत के सुगंध से मह मह कर रहा होता। एक पल के लिए महादेव के साथ महंत को भी नंदी के नेत्र ढूंढने लगे पर वह तो शिवधाम में बैठ कर लीला देख रहे होंगे।

 

नंदी को चिंता है कि बाहर आने पर भोलेनाथ का मै कैसे अभिषेक करूंगा ? सारे भक्त जब महादेव की जय जयकार कर रहे होंगे, फूल माला दीप अक्षत चंदन से महादेव का स्वागत कर रहे होंगे तब नंदी अपने स्वामी को क्या अर्पित करेगा? नंदी विचलित होकर माँ गंगा को पुकारते हैं, बार बार गोहराते हैं। महादेव का श्रृंगार गंगाजल से ही होगा। उनके कातर स्वर माँ को भिगो देते हैं। गंगा मैया को स्वयं चलकर नंदी के नयनों तक आना पड़ता है।

 

नंदी के नेत्रों में गंगा की लहरें उछाह मार रही हैं, हिलोर ले रही हैं। इन अश्रु जल बिन्दुओं से महादेव का अद्भुत और निर्मल श्रृंगार होगा।

लेख दुबारा लगभग दो साल बाद फिर से पोस्ट किया है

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