भयानक दैत्यगण के कारण अगस्त्य जी को पूरे समुद्र को पीना पड़ा

 

हमारे सनातन धर्म में ऎसे-ऎसे ऋषि-मुनि हुए जिन्होंने अपने तप से अनेको अद्धभूत सिद्धियां प्राप्त की जिससे उन्होंने असम्भव कार्य को भी सम्भव बना दिया। ऎसे ही एक ऋषि हुए “ऋषि अगस्त्य” इन्होने अपनी शक्तियों से समुद्र का सम्पूर्ण जल पीकर उसे सूखा दिया था। “ऋषि अगस्त्य” अद्धभूत सिद्धियों के स्वामी थे उन्होंने देवताओ की सहयता के लिए अनेको अद्धभूत कार्य किये थे। एक बार उन्होंने समग्र समुद्र का जल पीकर उसे जल-विहीन कर दिया था।

 

आखिर “अगस्त्य” मुनि ने ऐसा अद्धभूत कार्ये क्यों और किसके कहने पर किया ?

 

सतयुग में एक दैत्य हुआ जिसका नाम “दैत्यराज वरतासुर” था। देवताओं से हुए एक भीषण युद्ध में वरतासुर मारा गया। उसके मरने के बाद दैत्यों के पास उनका कोई राजा नहीं था तब सारे दैत्य देवताओं के भय से समुद्र में छिप गए थे। समुद्र में छिपे सभी दैत्य हर समय यही विचार किया करते थे की किस प्रकार “देवराज इंद्र” का वध किया जाये। तब दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य ने दैत्यों को समझाया की देवताओं को अपनी सभी शक्तियाँ तप से ही मिलती है। इसलिए हमे सबसे पहले इस तप का ही नाश कर देना चाहिए तथा सभी ऋषियों-मुनियों का विनाश कर देना चाहिए। ऐसा करने से उन देवताओ के साथ सारा संसार स्वयं ही नष्ट हो जायेगा।

 

ऐसा विचार करने के बाद उन दैत्यों ने रात के समय समुद्र से बहार निकलकर ऋषियो के आश्रमों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया तथा आश्रम में उपस्थित सभी ऋषि-मुनियों को मारकर खा जाते थे और सूर्य निकलने से पहले ही पुनः समुद्र के भीतर जाकर छिप जाते थे। इस तरह दैत्यों के द्वारा ऋषियो का नाश होने लगा तथा यज्ञ, तप, आदि नष्ट होने लगे तो ऋषियो के साथ सभी देवताओं को भी चिंता सताने लगी।

 

जब देवता ऋषियो की रक्षा करने में विफल हुए तो सभी देवताओं और सप्त ऋषियों ने जाकर भगवान् श्रीहरिविष्णु की शरण ली, देवताओ ने भगवान् श्रीहरिविष्णु को सारी स्थिति से अवगत कराया की किस प्रकार दैत्य रात्रि के समय समुद्र से बाहर निकलकर सभी ब्राह्मणो-ऋषियो तथा मुनियो का वध कर रहे है तथा दिन के समय समुद्र में जाकर छिप जाते है, सारी स्थिति से अवगत कराने के बाद सभी ने प्रभु से अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना की, सभी की बात सुनकर भगवान् “श्रीहरिविष्णु” ने उनसे कहा की दैत्य जब तक समुद्र के भीतर है तब तक तुम उनका विनाश नहीं कर सकोगे इसलिए तुम्हे इस समुद्र को सुखाने का कोई उपाय करना चाहिए। भगवान विष्णु की यह बात सुनकर सभी देवता आश्चर्य में पड़ गए और बोले की प्रभु इतना विशाल समुद्र किस उपाय से सुखाया जा सकता है।

 

तब भगवान “श्रीहरिविष्णु” ने देवताओ से कहा की इस समुद्र को सुखाने में अगस्त्य मुनि के अलावा और कोई समर्थ नहीं है इसलिए आप सभी इस कार्य के लिए अगस्त्य मुनि से प्रार्थना करे कि वे अपने तप कि शक्ति से समुद्र को सूखा दे।

 

“श्रीहरिविष्णु” की यह बात सुनकर सभी देवता अगस्त्य मुनि जी के आश्रम में आये और उनसे प्रार्थना करने लगे। देवताओं के द्वारा अपनी स्तुति सुनकर अगस्त्य मुनि ने प्रसन्न होकर उनसे पूछा की किस कार्यवश आप सभी मेरे आश्रम में पधारे है। तब सभी ने अगस्त्य मुनि को सारी स्थिति कह सुनाई और “श्रीहरीविष्णु” के द्वारा दिखाए गए मार्ग के बारे में भी अगस्त्य मुनि को अवगत कराया और प्रार्थना की, कि प्रभु आप समग्र मनुष्य जाती कि रक्षा के लिए समुद्र के सम्पूर्ण जल को पीकर, उसे सूखा दे जिससे हम उसमे छुपे सभी दैत्यों का नाश कर सके।

 

देवताओ कि प्रार्थना से प्रसन्न होकर अगस्त्य मुनि सभी के साथ समुद्र के तट पर आ गए। सभी के देखते ही देखते सारे समुद्र का जल पी गए। समुद्र का जल सूखते ही सभी देवताओं ने मिलकर सभी दैत्यों का वध डाला। कुछ दैत्य जान बचाकर भाग खड़े हुए और जाकर पातळ-लोक में शरण ली। इस प्रकार दैत्यों का वध करने के बाद सभी देवता अगस्त्य मुनि जी के पास आये और उनसे विनती की, कि आप इस समुद्र को पुनः जल से भर दे। अगस्त्य मुनि ने उन देवताओं से कहा की जो जल मैंने पिया था वो पच गया है इसलिए अब मैं समुद्र को वापस जल से परिपूर्ण करने में असमर्थ हूँ। अतः अब समुद्र को पुनः जल से भरने के लिए आप लोग कोई दूसरा उपाय सोचे ?

 

अगस्त्य मुनि की यह बात सुनकर देवताओ को बड़ा आश्चर्य हुआ और फिर वह सभी परमपिता ब्रम्हा जी के पास गए और उनसे समुद्र को पुनः जल से भरने की प्रार्थना की

 

तब ब्रम्हा जी ने कहा की जब राजा भगीरथ गंगाजी को पृथ्वी पर उतारेंगे तभी ये समुद्र पुनः जल से भर पायेगा। तब तक आप सभी को प्रतीक्षा करनी होगी।

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