एक बार देवताओ की सभा मे इन्द्र द्वारा देवताओ से प्रश्न किया गया कि संसार मे महावीर कौन है ? अधिकांश देवताओ ने हनुमान का नाम लिया ,जिसका अनुमोदन नारद जी द्वारा किया गया ।परन्तु शनिदेव ने इसे स्वीकार नही किया अपितु उन्हे हनुमान से ईर्ष्या हो गयी ।वे वहाँ से चल दिये ।संयोग से आकाश मार्ग से तीव्र गति से हनुमान जी जा रहे थे ।रास्ते मे दोनो मे टक्कर हो गयी और शनिदेव गिर पडे ।देवता यह देखकर हंसने लगे और शनिदेव को क्रोध आ गया ।शनिदेव ने राम से ही हनुमान का युद्ध कराने का निश्चय किया जिससे वे हनुमान की शक्ति देख सके।

 

गंगा के किनारे कौशिक मुनि के आश्रम पर शनिदेव आते है ।वही पर विदर्भ पति चंन्द्केतु भी नौका विहार कर रहा था ।कौशिक मुनि ने अंजलि मे जल लेकर सूर्य को अर्पण करना चाहा हि था कि शनिदेव ने माया रची और चन्द्रकेतु देख नही पाया अर्घ देने जा रहे कौशिक मुनि से वह टकरा गया ।कौशिक जी के अंजुली का जल गिर गया ।चन्द्रकेतु की समझ मे कुछ नही आया वह चला गया ।कौशिक मुनि क्रोध मे आकर तुरन्त ही भगवान राम से चन्द्रकेतु का बध कराने की प्रतिज्ञा करवा ली।नारद जी जब शनिदेव की माया से अवगत हुये तो भगवान राम से प्रण तोडने को कहा ,परन्तु राम नही माने ।नारद जी ने यह सूचना चन्द्रकेतु को भिजवा दी ।

भगवान राम ने लक्ष्मन ,एवं हनुमान को आज्ञा दी कल चन्द्रकेतु का सिर मेरे सामने हो ।इधर चन्द्रकेतु के प्राण सूख रहे थे ,नारद जी चन्द्रकेतु को लेकर हनुमान जी की माता अंजनी के पास गये ।चन्द्रकेतु अंजनी के पैर को पकडकर रोने लगा तब उन्होने रक्षा का वचन भी दे दिया ।जब अंजना को वास्तविकता की जानकारी हुई तो बहुत पश्चाताप किया ।परन्तु वचन दे दिया ।वह चन्द्रकेतु को लेकर हनुमान के पास गयी ।परन्तु हनुमान जी ने कहा माँ मै कुछ नही कर सकता मै तो इन्हे मारने का वचन दिया है अपने प्रभु को ।अंजना ने बहुत कहाँ पर जब हनुमान विचलित नही हुये तो अंजना ने क्रोध मे आकर कहा तुम अपने स्वामी का वचन पूरा करोअपना प्रण ।अब तुम्हारा पहला युद्ध मुझसे होगा ।अब हनुमान की आत्मा धिक्कारने लगी वह चन्द्रकेतु की रक्षा करने को तैयार हो गये ।

 

अब हनुमान जी ने अपनी पूँछ के घेरे मे चन्द्रकेतु को बैठाकर स्वयं बैठ गये ।बिलम्ब देखकर लछमनजी भी वहाँ पहुँचे परन्तु यह दृष्य देखकर हनुमान को धिक्कारने लगे तथा युद्धार्थ ललकारने लगे ।परन्तु रामाज्ञा न होने के कारण करते भी क्या ? जब भगवान राम को यह समाचार मिला तो एक एक करके सत्रुघन लछमन,भरत सहित पूरी सेना भेजी परन्तु सब के सब हार गये ।हनुमान जी सिर्फ राम राम रट रहे थे ।अन्त मे कौशिक (विश्वामित्र) जी के साथ भगवान राम आये ।और बाण चलाने लगे ।परन्तु जब बाण निष्फल होने लगे ।तो भगवान शिव का स्मरण कर जब बाण चलाना चाहा ।तो भगवान शिव प्रकट होकर सारी स्थित को बताया कि शनि का गर्व दूर करने को यह लीला थी ।वास्तव मे हनुमान जी महावीर है ।विश्वामित्र के कहने पर भगवान राम ने चन्द्रकेतु को अभयदान दिया ।

 

महावीर विनवउँ हनुमाना ।

राम जासु जस आप बखाना ।।

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