महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

 

शिवरात्रि पर विशेष सावधानियां

हर चंद्र मास का चौदहवाँ दिन अथवा अमावस्या से पूर्व का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्श में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य भीतर ऊर्जा का प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग करने के लिए, इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले – आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए – निरंतर जागते रहते हैं।

 

महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व

इसके पीछे की कथाओं को छोड़ दें, तो यौगिक परंपराओं में इस दिन का विशेष महत्व इसलिए भी है क्योंकि इसमें आध्यात्मिक साधक के लिए बहुत सी संभावनाएँ मौजूद होती हैं। आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है। ‘योगी’ शब्द से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, जिसने अस्तित्व की एकात्मकता को जान लिया है। जब मैं कहता हूँ, ‘योग’, तो मैं किसी विशेष अभ्यास या तंत्र की बात नहीं कर रहा। इस असीम विस्तार को तथा अस्तित्व में एकात्म भाव को जानने की सारी चाह, योग है। महाशिवारात्रि की रात, व्यक्ति को इसी का अनुभव पाने का अवसर देती है।

 

शिवरात्रि पर विशेष सावधानियां

महाशिवरात्रि की पूजा के दौरान भगवान शिव पर न चढ़ाएं ये चीजें

 

महाशिवरात्रि की खास विशेष पूजा में कुछ खास चीजों से भगवान शिव की पूजा की जाती है। वहीं कुछ ऐसी चीजों का भी ध्यान रखना चाहिए जो भगवान शिव को नहीं चढ़ाई जाती है। भूल से भी उन चीजों का उपयोग पूजा में किया तो दोष लगता है। भगवान शिव को भांग- धतूरे का चढ़ावा बहुत पसंद है, पर कुछ ऐसी सामग्रियां भी हैं जिनका उपयोग महाशिवरात्रि पर शिव आराधना के दौरान बिल्कुल नहीं करना चाहिए। शिवपुराण के अनुसार शिव भक्तों को कभी भी भगवान शिव को इन छह वस्तुओं का प्रसाद नहीं चढ़ाना चाहिए।

 

केतकी के फूल

पौराणिक कथा के अनुसार केतकी फूल ने ब्रह्मा जी के झूठ में साथ दि या था, जिससे नाराज होकर भोलनाथ ने केतकी के फूल को श्राप दिया और कहा कि शिवलिंग पर कभी केतकी के फूल को अर्पित नहीं किया जाएगा। इसी श्राप के बाद से शिव को केतकी के फूल चढ़ाना अशुभ माना गया है।

 

हल्दी ना चढ़ाएं

शिवजी के अतिरिक्त लगभग सभी देवी- देवताओं को पूजन में हल्दी गंध और औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है। शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग पुरुष तत्व का प्रतीक है और हल्दी स्त्रियोयोचित वस्तु है। स्त्रियोयोचित यानी स्त्रियों से संबंधित। इसी वजह से शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाई जाती है।

 

कुमकुम या सिंदूर

सिंदूर, विवाहित स्त्रियों का गहना माना गया है। स्त्रियां अपने पति की लंबे और स्वस्थ जीवन की कामना के लिए अपने मांग में सिंदूर लगाती हैं और भगवान को भी अर्पित करती हैं, लेकिन शिव तो विनाशक हैं, यही वजह है कि सिंदूर से भगवान शिव की सेवा करना ठीक नहीं माना जाता है।

 

शंख से जल

दैत्य शंखचूड़ के अत्याचारों से देवता परेशान थे। भगवान शंकर ने त्रिशूल से उसका वध किया था, जिसके बाद उसका शरीर भस्म हो गया,उस भस्म से शंख की उत्पत्ति हुई थी। शिवजी ने शंखचूड़ का वध किया इसलिए कभी भी शंख से शिवजी को जल अर्पित नहीं किया जाता है।

 

तुलसी की पत्ती

यूं तो तुलसी की पत्तियां पूजा में काम आती है, लेकिन भगवान शिव की पूजा के लिए नहीं करना चाहिए। भगवान शिव ने तुलसी के पति असुर जालंधर का वध किया था। इसलिए उन्होंने स्वयं भगवान शिव को अपने अलौकिक और दैवीय गुणों वाले पत्तों से वंचित कर दिया।

।। ॐ नमः शिवाय ।।

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